स्त्री आंदोलन की जड़ में आदमीयत की पैरवी ही है : प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा

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भेलूपुर स्थित मैत्री भवन में आयोजित युवा संवाद कार्यक्रम में देशभर के प्रबुद्धजनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की रही उपस्थिति

वाराणसी (सृष्टि मीडिया)। आज का समय, कम से कम हमारे देश में, मानवीयता और व्यक्ति के अधिकारों के अस्तित्व-संकट का समय है। व्यक्ति की पहचान मिटाकर उसे धर्म-जाति-नस्ल की सामूहिकता में घोल दिया जा रहा है। यह दस्तक है राजशाही या तानाशाही के आने की। राजशाही और तानाशाही व्यक्ति को खारिज कर के उसे मात्र भीड़ में तब्दील करने में विश्वास करतीं हैं। यह भीड़तंत्र का प्रवेश द्वार है। आज हमारा संघर्ष इसी के विरुद्ध है। इस समय जब बलात्कारी पूजे जा रहे हैं, स्त्रियों की गैरत ज्यादा बड़े दाँव पर लगी है। इसलिये आज की लड़ाई मनुष्य मात्र की होते हुये भी स्त्रियों द्वारा ज्यादा लड़ी जायेगी, ऐसी अपेक्षा है।

सीजेपी, गाँव के लोग और पीयूसीएल के संयुक्त तत्वावधान में हुआ आयोजन

कार्यक्रम को सम्बोधित करतीं हुईं प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा

उक्त विचार लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा के हैं। वे आज यानी मंगलवार को बनारस के भेलूपुर स्थित मैत्री भवन में सीजेपी, गाँव के लोग और पीयूसीएल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित युवा संवाद कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोल रही थीं। उन्होंने कहा कि स्त्री दृष्टिकोण से मानवाधिकार की परिकल्पना ठीक वही होगी जो पुरुष दृष्टिकोण से होनी चाहिये। स्त्री-अधिकार के आंदोलनों का मूल आधार स्त्रियों के मनुष्यत्व और व्यक्तित्व को ही पूरी तरह पाना है। मनुष्य वाली पहचान और स्व-चालन/ आत्म निर्भरता जिस आसानी से पुरूषों में मान लिया जाता है वैसे स्त्रियों में नहीं। इस मूल आदमीयत की पैरवी ही मुझे स्त्री अधिकार के आंदोलन की जड़ में दिखाई देती है।

फ्री स्पीच और हेट स्पीच के बीच हमें फर्क करना होगा : सीतलवाड़

इससे पहले अपने वीडियो संदेश में प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा कि भारत का संविधान जिन सिद्धांतों को लेकर बना और जिन संघर्षों से सामने आया यह भी हमें समझना बहुत जरूरी है। जो आज़ादी और जनतंत्र हमें मिला है वह आसानी से नहीं मिला है। संविधान का नीति-निर्देशक हमारे राज्य को राह देता है कि वह इस तरह की नीतियाँ बनाए जिनसे सामाजिक-आर्थिक बराबरी और सामाजिक न्याय लोगों को हासिल हो। सीतलवाड़ ने आगे कहा कि बाबा साहब डॉ. अंबेडकर ने संविधान का पहला ड्राफ्ट पेश करते हुये जो कहा कि हम एक अनोखी और डरावनी राह पर चलने जा रहे हैं। वह आज भी बहुत प्रासंगिक है। आज हमें नफरत और गलत फहमियों के खिलाफ लड़ना है। हमारे समाज में लगातार नफरत की भावनाएं फैलाई जा रही हैं और आजादी की आवाजें दबाई जा रही हैं। हमें फ्री स्पीच और हेट स्पीच के बीच फर्क करना होगा। बराबरी और सम्मान पर होने वाले हमलों के खिलाफ खड़ा होना होगा।

मानवाधिकार पर बोले प्रमोद बागड़े

प्रोफेसर प्रमोद बागड़े ने कहा कि भारतीय संविधान मानवाधिकार के विचार और व्यवहार को सैद्धांतिक रूप से अभिव्यक्त करता है। मानवाधिकार की अवधारणा मानव गरिमा और समता के विचार आधारित है। इस विचार को भारतीय संविधान भी प्रतिबिंबित करता है। आवश्यकता है इस विचार को हकीकत में बदलने की।

नौजवानों के लिए रोजगार का सवाल है अहम : कुसुम वर्मा

महिला संगठन ऐपवा की राज्य सचिव कुसुम वर्मा ने कहा कि भारत देश में रोजगार का सवाल आज सीधे तौर पर मानवाधिकार के हनन का सवाल बन चुका है। जनसंख्या की दृष्टिकोण से घनीभूत भारत देश में महिलाओं की बड़ी आबादी का जीडीपी में अनुपात न के बराबर है अर्थात महिला श्रम आर्थिक विकास से लगभग बाहर है। युवा संसद को संबोधित करते हुए कुसुम ने कहा कि नौजवानों के लिए रोजगार का सवाल आज प्रमुख सवाल है और रोजगार को मौलिक अधिकार का दर्जा देने के लिए हमसभी को एकजुट होना होगा।

जब देश में संविधान ही खतरे में है : राजीव कुमार मंडल

कार्यक्रम के दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए जाने-माने वैज्ञानिक और विचारक प्रोफेसर राजीव कुमार मंडल ने कहा कि वोटों के द्वारा अधिनायकवादी और निरंकुश सरकार पहले भी स्थापित हुई हैं और आज भी हो रही है। हिटलरशाही के नए प्रयोगों को आज हम अपने संदर्भों में देख रहे हैं। यह जॉर्ज आरवेल के उपन्यास 1984 की काल्पनिक दुनिया से इतर है। यहाँ बिग ब्रदर एक राजनीतिक पार्टी का है जो चुनाव जीतता है पर वह एक गैर राजनीतिक संस्था के संविधान से देश चलता है और धीरे-धीरे देश की संस्थाएं गैर प्रासंगिक होती जा रही हैं। भय इतना कि कोई कुछ बोलना नहीं चाहता। जब देश में संविधान ही खतरे में है तो मानवाधिकार की बात कोई विशेष महत्व नहीं रखती। संविधान की रक्षा एक राजनीतिक संघर्ष की मांग करती है। इस विमर्श के दौरान कुछ स्थापनाएं की जाएंगी जो शाहीन बाग की दादियों के संघर्ष को मुख्यत: स्थापित करेंगी। इसके बाद कुछ विचारकों के द्वारा कहे गए सिद्धांतों की पेशकश होगी। समस्याएँ इतनी गहरी हैं कि वे एक गंभीर विमर्श की मांग करती हैं। व्हाट्सएप के युग में ऐसी गुंजाइश बहुत कम है। इस मायने में मैं आयोजकों को धन्यवाद देता हूँ कि युवाओं को मोबाइल की दुनिया से बाहर निकालने की कोशिश की है। सैद्धांतिकीकरण होगा कि बुद्धिजीवी बोलता क्यों नहीं है? क्या इसका यही वर्ग चरित्र है? फिर मैं विश्वविद्यालयों के शिक्षकों की बात करूंगा कि क्यों वे अपनी पांडित्य परंपरा को इतनी जल्दी भूलना चाहते हैं जिससे विमर्श और जनतंत्र का नाश हो?

झूठ और भ्रम का शिकार होने से बचें : अपर्णा

धन्यवाद ज्ञापन करते हुये गाँव के लोग की कार्यकारी संपादक अपर्णा ने कहा कि युवा संवाद के आज के इस कार्यक्रम में संविधान और मानवाधिकार जैसे जरूरी और महत्त्वपूर्ण विषय पर बातचीत हुई। आज जो स्थितियां देश में बनी हैं, जिसमें संविधान के साथ-साथ इंसान के अस्तित्व पर भी खुलकर हमले हो रहे हैं। खास समुदायों को निशाने पर रख गया है। उन पर सत्ता संरक्षित और पोषित गुंडे हमले कर खुले घूम रहे हैं। इससे लड़ा जा सकता है बशर्तें हर कोई अपनी समझदारी का उपयोग करे न कि फैलाये जा रहे झूठ और भ्रम का शिकार हो। यहाँ अभिव्यक्ति की आजादी को खत्म करने साजिशें खुलेआम चल रही हैं।

लोगों में जहर भर रही है सरकार : मुनीजा

डॉ. मुनीजा रफीक खान बीते सोमवार को ही शाम झारखण्ड के गिरिडीह से आये तीन मित्रों को काशी विश्वनाथ कॉरीडोर में संदेह के आधार पर पुलिस ने कस्टडी में ले लिया क्योंकि उनमें से एक हिन्दू और दो मुस्लिम थे। इसका मतलब है कि अब लोगों के मन में जहर भरकर उन्हें अलगाया जा रहा है। सरकार की पूरी मंशा मनुवादी संविधान को लागू कर तालिबानी स्थिति पैदा करना है। मानवाधिकारों को दरकिनार कर लोगों पर हमले हो रहे हैं। यह स्वस्थ लोकतन्त्र के लिए बहुत बड़ा खतरा है। कार्यक्रम के दौरान दर्शक दीर्घा में बैठे सैकड़ों लोगों के साथ प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।

रिपोर्ट : सृष्टि मीडिया टीम

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