जिले में 2017 के बाद कमजोर होता गया बसपा का प्रदर्शन

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आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। एक दौर वह भी था जब 1993 में सपा से गठबंधन के साथ बसपा जिले में बहुत तेजी से उभरी। उस समय सभी 10 विधानसभा सीट गठबंधन के खाते में आ गई थी। कुछ ही दिनों बाद गठबंधन तो टूट गया, लेकिन जनता ने दोनों ही पार्टियों को लगभग बराबर का सम्मान दिया, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद बसपा का ग्राफ गिरना शुरू हुआ, तो संभल नहीं पाया। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां फिर एक साथ उतरीं तो एक-एक सीट जरूर मिल गई। इसी नाते जिले को सपा-बसपा का गढ़ कहा जाने लगा। यह अलग बात रही कि नेताजी मुलायम सिंह यादव ने यह कहकर जिले को अपना गढ़ बताने की कोशिश की थी कि इटावा अगर दिल है तो आजमगढ़ दिल की धड़कन।
बसपा के खाते में 2017 के विधानसभा चुनाव में चार सीटें आई थीं, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में उसे सभी 10 सीटों पर तीसरे स्थान का स्वाद चखना पड़ा, जबकि भाजपा सभी सीटों पर रनर बन गई।
वैसे बसपा को 2014 के लोकसभा चुनाव में ही उस समय बड़ा झटका लगा था जब जिले की दोनों सीटों पर उसके प्रत्याशी तीसरे स्थान पर सिमट गए, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में चार सीटें बसपा के खाते में आ गईं।
मोदी लहर के असर को सपा और बसपा ने महसूस किया, तो 2019 में फिर साथ मिलकर चुनाव लड़ा। उसका लाभ भी मिला और दोनों के खाते में एक-एक सीट आ गई, लेकिन गठबंधन उसके बाद एक बार फिर टूट गया। नतीजा यह हुआ कि 2022 के विधानसभा चुनाव ही नहीं, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा तीसरे स्थान पर सिमट गई। अब ऐसे में सवाल यह उठने लगा है कि आखिर बसपा के मतदाता कहां शिफ्ट हो रहे हैं।
इनसेट–
तीन चुनाव में मतदाताओं की संख्या और बसपा को मिले वोटों का विवरण:ःःः
मतदाता——बसपा को मिले मत
आजमगढ़ःःःः
वर्ष 2014-1703121—266528
वर्ष 2019 -1789168–(चुनाव नहीं लड़ी)

वर्ष 2024-1868165—179839

लालगंजःःःः
वर्ष 2014-1661470—233971
वर्ष 2019-1751980—518820
वर्ष 2024-1838882—210053
रिपोर्ट-सुबास लाल

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