बनारस के इस संत ने मंदिर तोड़ने वाले आक्रांताओं को घेरा

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संविधान और कानून व्यवस्था पर मुसलमानों को विश्वास करना चाहिए: सम्पतकुमाराचार्य
वाराणसी (सृष्टि मीडिया)
। ज्ञानवापी परिसर में कमीशन की कार्रवाई कर रहे एडवोकेट कमिश्नर को बदलने के लिए अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत में शनिवार को दाखिल प्रार्थना पत्र पर सोमवार को सुनवाई होगी। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ताओं ने एडवोकेट कमिश्नर की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए उन्हें बदलने की अदालत से अपील की है। अदालत ने एडवोकेट कमिश्नर और वादी पक्ष को अपना पक्ष रखने का अवसर देते हुए उनसे आपत्ति मांगी है।
बनारस में बोले स्वामी सम्पतकुमाराचार्य
दूसरी तरफ, काशी के वैष्णव मठ के पीठाधीश्वर स्वामी सम्पतकुमाराचार्य ने कहा कि जिन आक्रांताओं ने मंदिर तोड़े, उनके वंशजों को संविधान और कानून व्यवस्था में कोई विश्वास नहीं है। कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध जाकर सर्वे न होने देना और वहां अराजकता की स्थिति पैदा करना इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। स्वामीश्री ने कहा कि सर्वे कब तक रोकेंगे। आज रोकोगे या कल रोकोगे… या सर्वे नहीं होने दोगे…? सर्वे करने वाले अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेंगे। निर्णय न्यायालय को लेना है। अदालत ने स्पष्ट रूप से पूरे परिसर का सर्वे कराने को कहा है। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता कोर्ट के अंदर कुछ और बात करते हैं। कोर्ट के बाहर इनके लोगों का व्यवहार लोकतंत्र को बंधक बनाने जैसा है।
गुटबाजी नहीं चलेगी
कहा कि किसी भी सभ्य देश और समाज में अराजकता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पहले से गुट बनाकर मुसलमानों को जुटा कर रखा गया था। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के सचिव बताएं कि अदालत के आदेश के विरुद्ध उन्होंने ऐसा क्यों किया? यह सब सुनियोजित षड्यंत्र के तहत किया गया है। इसमें प्रशासनिक विफलता जैसी कोई बात नहीं है। सम्पत कुमाराचार्य ने कहा कि यह लोग भारतीय संविधान के दायरे में कभी नहीं आएंगे और ऐसे ही उल्टा-सीधा व्यवहार हमेशा करते रहेंगे। एक बात किसी को कभी नहीं भूलनी चाहिए कि सत्य थोड़ी देर के लिए परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं हो सकता है।
यह है मामला
ध्यातव्य रहे कि इस मामले में अदालत का कहना था कि इस प्रकरण में प्रतिवादी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी द्वारा एडवोकेट कमिश्नर पर प्रश्नचिह्न लगाया गया है, जबकि प्रतिवादी शासन, प्रशासन व पुलिस आयुक्त की ओर से शासकीय अधिवक्ता द्वारा एडवोकेट कमिश्नर को निष्पक्ष कहा गया है। प्रार्थना पत्र की प्रति अभी तक वादी पक्ष के अधिवक्ताओं को प्राप्त नहीं कराई गई है और न ही एडवोकेट कमिश्नर अपना पक्ष रखने के लिए उपस्थित हुए हैं। ऐसे में न्यायोचित होगा कि प्रार्थना पत्र की प्रति वादी पक्ष को दी जाए।
रिपोर्ट : अमन विश्वकर्मा

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