आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। आजमगढ़ महोत्सव के तीसरे दिन का पहला सत्र नाट्य मंचन के नाम रहा। हरिऔध कला केंद्र में मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित नाटक ‘बूढ़ी काकी’ ने एक बार दर्शकों को रुलाया तो आखिर में सुखद संदेश भी दे गया।
बूढ़ी काकी विधवा और अकेली है। उसने अपनी सारी संपत्ति अपने भतीजे बुधिराम के नाम कर दी, जिसके बदले में बुधिराम और उसकी पत्नी रूपा उसकी देखभाल करते हैं। काकी सारा दिन अकेली कोठरी में बैठी रहती हैं। इस प्रकार उनका जीवन व्यतीत हो रहा था। एक दिन घर में बुधिराम के बेटे का तिलक आया और उत्सव चला, लोग गा और नाच रहे थे। सभी भोज का आनंद ले रहे थे लेकिन भूखी-प्यासी बूढ़ी काकी भोजन के सुगंध से व्याकुल हुई जा रही है, क्योंकि घर के सभी सदस्य बहुत व्यस्त थे और उन्हें कोई पूछ नहीं रहा था। जब सभी सो गए, तब बूढ़ी काकी अपनी कोठरी से बाहर निकलकर उस स्थान पर जाती है जहां लोगों के खाए हुए जूठे पत्तल फेंके हुए थे। उनमें से चुन-चुनकर पूरी और मिठाइयां वह खाने लगती हैं। यह दृश्य जब रूपा देखती है, तो उसे आत्मग्लानि होती है। वह बूढ़ी काकी से क्षमा मांगती है और उसे भोजन देती है। इस प्रकार इस नाटक का सुखद अंत होता है।
नाटक में प्रेमचंद के ग्रामीण जीवन की यह कहानी बिल्कुल आधुनिक ढंग से प्रस्तुत की गई, जिसका पूरा श्रेय कल्पनाशील और निर्देशक अभिषेक पंडित को जाता है। मंच पर कुल पांच अभिनेताओं ने बारी-बारी से बूढ़ी काकी का अभिनय किया। नाटक का सबसे मजबूत पक्ष उसका संगीत रहा, जिसे मध्य प्रदेश नाटक विद्यालय भोपाल से प्रशिक्षित शशिकांत कुमार ने प्रस्तुत किया।
अभिनेताओं के सधे हुए अभिनय ने दर्शकों को हंसने और रोने को विवश कर दिया। मंच पर मुख्य अभिनेता के रूप में ममता पंडित, डॉ.अलका सिंह, अंगद कश्यप, संदीप कुमार, सूरज यादव ने अपने शानदार अभिनय से पूरी कहानी को जीवंत कर दिया। नाटक का संगीत लोक धुनों और कबीर वाणी पर आधारित और काफी कर्णप्रिय रही। मंच पर सत्यम कुमार, शिवम कुमार, नेहा कुमारी, सुमन, अनिल कुमार, गोपाल मिश्रा, गोपाल चौहान, रोशन पांडेय, हर्ष कुमार, विशाल कुमार ने कोरस के रूप में शानदार गायन का प्रदर्शन किया। पार्श्व मंच अमित गौर विवेक पांडेय सुधीर ने बखूबी संभाला। ढोल वादन शैलेश का रहा।
रिपोर्ट-प्रमोद यादव/ज्ञानेन्द्र कुमार