गंगा दशहरा पर कथा-प्रवचन का आयोजन
वाराणसी (सृष्टि मीडिया)। गंगा दशहरा के अवसर पर वैष्णव मठ के पीठाधीश्वर स्वामी सम्पतकुमाराचार्य ने मां गंगा का विधि-विधान से पूजन-अर्चन किया। तत्पश्चात मठ पर आयोजित गंगा पूजन के दौरान स्वामीश्री ने कहा कि गंगा दशहरा का पर्व हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन होती है। कहा कि इसी दिन मां गंगा राजा भगीरथ के कठोर तपस्या करने के बाद स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। इसलिए गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने का महत्व और बढ़ जाता है। ऐसा करने से पितरों का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है, पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पाप हरती हैं मां गंगा
कथा प्रवचन में स्वामीश्री ने कहा कि कपिल मुनि ने राजा सगर के 60 हजार पुत्रों पर घोड़ा चोरी का झूठा आरोप लगाया और उन सबको भस्म होने का श्राप दे दिया था। राजा सगर के पुत्रों के मोक्ष के लिए उनके कुल के राजा भगीरथ ने ब्रह्माजी को अपने तप से प्रसन्न किया। ब्रह्माजी ने जब भगीरथ को वरदान मांगने को कहा, तो उहोंने मां गंगा को पृथ्वी पर अवतरित कराने का वरदान मांगा। बह्माजी ने स्वर्ग में बहने वाली गंगा को अपने कमंडल से छोड़ा, जिससे मां गंगा तीव्र गति से भगवान शिव जटाओं में कैद हो गई। लेकिन अब समस्या यह थी कि शिवजी की जटाओं से गंगा को पृथ्वी पर कैसे लाया जाए।
कथा सुन विभोर हुए भक्त
इसके लिए ब्रह्माजी ने भगीरथ को शिवजी को प्रसन्न करने को कहा। भगीरथ ने अपनी तपस्या से शिवजी को प्रसन्न किया। शिवजी ने भगीरथ को वरदान मांगने को कहा तो, भगीरथ ने मां गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करने को कहा। भगवान शिव भगीरथ की मनोकामना पूरी करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद मां गंगा शिव की जटाओं से निकलकर पृथ्वी पर अवतरित हुर्इं। इसके बाद मां गंगा के स्पर्श से राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस घटना के बाद से ही मां गंगा पृथ्वी पर प्रवाहित होने लगीं। कथा समाप्ति के बाद भक्तों ने मां गंगा का जयघोष किया।