अतरौलिया आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। लोहरा ग्रामसभा में रहने वाले लगभग 30 परिवारों के सामने अचानक बेघर होने का संकट खड़ा हो गया है। बीते 70 वर्षों से जिस भूमि पर ग्रामीण बसे हैं, उसकी पैमाइश कर खाली कराने की बात कही जा रही है। इससे नाराज ग्रामीणों ने उपजिलाधिकारी बूढ़नपुर को ज्ञापन सौंपकर न्याय की गुहार लगाई है। ग्रामीणों ने सवाल उठाया कि यदि जमीन खलिहान थी, तो प्रशासन पिछले सात दशकों तक मौन क्यों रहा। ग्रामीणों ने कहा कि उनके घर, ग्रामीण सचिवालय और सुलभ शौचालय तक इसी जमीन पर बने हैं, जो वर्षों तक बंजर और नवीन परती दर्ज थी, लेकिन अब कागजी रूप से खलिहान दिखाई जा रही है।
ग्रामीणों का कहना है कि पीढ़ियों से बसे मकान गिराना न तो न्यायसंगत है, न मानवीय। 30 परिवारों के सिर से छत छिन जाएगी और कोई वैकल्पिक आवास या मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा।
ज्ञापनकर्ता बच्चन गौड़ ने कहा कि कई घर 70-80 साल से बने हैं, फिर भी अचानक मापकर हटाने की बात कही जा रही है। राधेश्याम गौड़ ने भावुक होकर कहा कि पिता-दादा यहीं रहे, आज इसे खलिहान बताया जा रहा है और हम सब सदमे में हैं। उत्सव सिंह ने कहा कि आबादी समझकर लोग बसे थे, अचानक यह कार्रवाई समझ से परे है। कलावती ने कहा कि यह घर उनकी मां की निशानी है, उसे उजाड़ना अन्याय होगा। जहीदुल निशा ने बताया कि पति के गुजरने के बाद यही उनका एकमात्र सहारा है, अब वह भी छिनने की नौबत आ गई है।
लेखपाल राकेश ने बताया कि जमीन विवादित है और न्यायालय में वाद चल रहा था, उसी के आदेश पर भूमि का निरीक्षण कर रिपोर्ट भेजी गई है। उन्होंने कहा कि फिलहाल किसी को हटाने की कार्रवाई नहीं की गई है और न्यायालय के निर्णय के बाद ही आगे कदम उठेगा। उधर उपजिलाधिकारी से संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन मोबाइल स्विच ऑफ मिला।
ग्रामीणों ने साफ कहा कि यदि प्रशासन को जमीन पर आपत्ति थी तो दशकों तक चुप क्यों रहा। गांव में स्कूल, शौचालय, सचिवालय तक बन गए, सरकारी योजनाएं लागू हुईं, वोटर लिस्ट और राशन कार्ड बने। अब अचानक पैमाइश कर बेदखली की बात करना सरासर अन्याय है। ग्रामीणों ने मांग की है कि स्थलीय जांच कर वास्तविक आबादी को सुरक्षित रखा जाए और किसी भी परिवार को बेघर न किया जाए।
रिपोर्ट-आशीष निषाद