आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। कृषि विज्ञान केंद्र, लेदौरा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. एलसी वर्मा ने किसानों को हरी खाद के लिए सनई या ढैंचा की बोआई की सलाह देते हुए बताया है कि इससे मृदा की उर्वरता और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है। प्राकृतिक खेती हेतु हमारे पूर्वज भी सनई या ढैंचा की फसल बोआई कर भूमि की उर्वराशक्ति और उत्पादकता को बढ़ाते थे।
हमारे यहां कृषि में दलहनी फसलों का महत्व सदैव रहा है। दलहनी एवं गैर दलहनी फसलों को उनके वानस्पतिक वृद्धि के समय जोताई कर पौधों को सड़ने के लिए मिट्टी में दबाना ही हरी खाद कहलाता है। यह फसलें अपनी जलग्रांन्थियों में उपस्थित सहजीवी जीवाणुओं द्वारा वायुमंडल में उपस्थित नत्रजन को सोखकर भूमि में एकत्र करती हैं। हरी खाद के लिए प्रयुक्त होने वाली प्रमुख फसलें दलहनी फसलों में ढैंचा, सनई, उर्द, मूंग, अरहर, चना, मसूर, मटर, लोबिया, मोठ, खेसारी तथा कुल्थी मुख्य हैं। वहीं जायद में हरी खाद के रूप में अधिकतर सनई, ऊँचा, उर्द एवं मूंग का प्रयोग ही प्रायः अधिक होता है।
रिपोर्ट-सुबास लाल