दीदारगंज आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। आमतौर पर कोई व्यक्ति जब पुश्तैनी पेशे से इतर कुछ हासिल कर लेता है, तो उस हुनर से विमुख होने लगता है, लेकिन सुबास की सोच अन्य लोगों से अलग दिखती है। पहले इंटर कालेज और अब महाविद्यालय में शिक्षण कार्य करने वाले सुबास चंद का कहना है कि इससे अगली पीढ़ी को संदेश मिलेगा। कारण कि जरूरी नहीं कि परिवार में सभी को नौकरी मिल जाए। परिवार के लोग भी अगर विमुख होंगे, तो उनके सामने भविष्य में आर्थिक संकट खड़ा होगा। हम शिक्षक रहकर अगर पुश्तैनी पेशे से जुड़े रहेंगे, तो आगे भी हमारी माटी कला जिंदा रहेगी।
दीदारगंज क्षेत्र के पुष्पनगर गांव निवासी व एक महाविद्यालय में शिक्षक के पद पर पदासीन सुबास चंद प्रजापति बीएससी बायो टेक्नोलाजी, बीएड, टीईटी क्वालीफाई हैं। कालेज के बाद खाली समय में मिट्टी के पात्र बनाने का कार्य करते हैं। निजमाबाद की तर्ज पर मिट्टी के आकर्षक बर्तन जैसे नारियल दीपक, लैम्प दीपक, स्टैंड दीपक, छठ दीपक, चौमुखी दीपक, धूपदानी, अगरबत्ती स्टैंड, कप- प्लेट, जग, मटकी, भगोना, कड़ाही, नदिया, थर्मस, गिलास, कटोरा आदि को कच्ची मिट्टी से तराश कर भिन्न-भिन्न रोजमर्रा के सामान को तैयार करते हैं। कुछ ऐसे भी सामान हैं जो आकर्षक माडल में गढ़कर निजमाबाद की तर्ज पर ब्लैक पार्टी तैयार करते है। तैयार किए हुए सामानों का घर के सामने स्टाल पर लगाते हैं। चूंकि स्टाल को घर के सामने रोड के किनारे लगाते हैं जिसके कारण आने-जाने वाला हर कोई मिट्टी के बर्तन को देखकर आकर्षित होता रहता है। माटी कला में इनके परिवार के पिता के अलावां और भी सदस्य जुड़े हुए हैं।
रिपोर्ट-पृथ्वीराज सिंह