हिंदू धर्म में सच या सत्य वचन को शाश्वत माना गया है : सम्पतकुमाराचार्य
वाराणसी (सृष्टि मीडिया)। देश-विदेश सम्मानित संत श्रीमद्जगद्गुरु भागवताचार्य त्रिदंडी स्वामीजी महाराज (ब्रह्मदंडी स्वामी) की छठवीं पुण्यतिथि के अवसर पर काशी के मदरवाँ स्थिति श्रीवैष्णव मठ में अखंड हरिकीर्तन एवं विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। इस दौरान त्रिदंडी स्वामीजी के सैकड़ों भक्तों ने उन्हें याद कर उनके चित्र के सामने शीष नवाया।
कथा सुनकर भाव-विभोर हुए भक्त
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी सम्पतकुमाराचार्य ने बताया कि त्रिदंडी स्वामीजी महाराज का जन्म ही अलौकिक माहौल में हुआ था। होश संभालते ही उन्होंने सनातन परम्परा के लिए अनेकानेक कार्य किए, जिन्हें देश का इतिहास हमेशा याद रखेगा। महाराजश्री कहते थे कि हिंदू धर्म में सच या सत्य वचन को शाश्वत माना गया है। तभी कहा भी जाता है कि सौ झूठ बोलने से भी सच नहीं मिटता। सच उसी तरह चमकता रहता है, जिस तरह सूरज की रोशनी। जो बादलों के कारण कुछ समय के लिए छिप जरूर जाती है लेकिन फिर उसी दिव्यता के साथ सम्पूर्ण जगत में छा जाती है। हिंदू धर्म में धर्म को जीवन जीने की कला के रूप में अपनाया गया है। सत्य के मार्ग पर चलना, दूसरों को कष्ट न देना, जीवों पर दया करना, जैसे विचारों को जीवन में उतारना सिखाया जाता है। ऐसे कार्यों को निंदनीय माना जाता है, जिनसे धर्म की हानि होती हो या समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हो। सम्पतकुमाराचार्य ने कहा कि महाराजश्री के इन्हीं विचारों को हम आगे बढ़ाते रहेंगे।
पुरुषोत्तमाचार्य को दी गई जगद्गुरु रामानुजाचार्य की उपाधि, लगे जयकारे
कार्यक्रम के दौरान श्रीवैष्णव मठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी सम्पतकुमाराचार्य, बंगाल पीठाधीश्वर श्रीमद्जगद्गुरु वासुदेवाचार्य महाराज एवं सम्मानित संत-विद्वानों की उपस्थिति में त्रिदंडी स्वामीजी महाराज के शिष्य और चाँदी (बिहार) स्थित श्रीराधाकृष्ण मंदिर के उत्तराधिकारी पुरुषोत्तमाचार्य (प्रशांतजी) को जगद्गुरु रामानुजाचार्य के पद से विभूषित किया गया। पुरुषोत्तमाचार्य ने कहा कि आगामी दिवसों में मैं देश के कोने-कोने में यज्ञ और भागवत कथाओं के माध्यम से सनातन परम्परा को सुदृढ़ करने का कार्य करूँगा।
सनातन धर्म के प्रति लिया संकल्प
उन्होंने आगे कहा कि सनातन धर्म में आत्मा को अमर माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता के उपदेश में यही कहा है कि आत्मा अमर है और अग्नि, जल, वायु इत्यादि का इस पर कोई प्रभाव नहीं होता है। जिस प्रकार मनुष्य पुराने कपड़ों का त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है, इसी प्रकार आत्मा भी पुराने पड़ चुके शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है। पुरुषोत्तमाचार्य के इन विचारों को सुनकर उपस्थित सभी भक्तों ने जयकारे लगाए। पूरा परिसर श्रीकृष्ण और त्रिदंडी स्वामीजी महाराज के जयघोष से गूँज उठा। उक्त अवसर पर काशी के विभिन्न विद्वानों के साथ आचार्य अजय चौबे, वेदाचार्य टुन्नाजी पांडेय, व्याकरणाचार्य भोला शास्त्री, आचार्य कृपाशंकर, आचार्य मदन आदि लोगों की उपस्थिति रही।
रिपोर्ट : अमन विश्वकर्मा