चैत्र नवरात्रि के पहले दिन काशी में शैलपुत्री के दर्शन

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दुर्गाकुंड में लाल चुनरी, नारियल और चूड़ा चढ़ाकर मिन्नतें कर रहीं व्रतियां

वाराणसी (सृष्टि मीडिया)। चैत नवरात्रि के पहले दिन वाराणसी में आदिशक्ति मां दुर्गा के मंदिरों में भक्तों की लंबी-लंबी कतारे लगीं हैं। पहले दिन व्रतियां और आम भक्त गण मां दुर्गा के पहले स्वरूप और हिमालय की बेटी माता शैलपुत्री का ध्यान-भजन कर रहे हैं। वाराणसी में वरुणा नदी के किनारे अलईपुर स्थित माता शैलपुत्री के मंदिर भक्तों की भीड़ है। पूरा मंदिर परिसर शेरोवाली के जयघोष से गूंज उठा है। वहीं, दुर्गाकुंड मंदिर से लेकर अन्नपूर्णा देवी तक सुबह 5 बजे से ही भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी है। महिलाएं लाल चुनरी, नारियल और चूड़ा चढ़ाकर माता का आशीर्वाद पा रहीं हैं। माता के सामने परिवार की रक्षा और सुख-शांति के लिए मिन्नतें कर रहीं हैं। भक्तों ने आज से 9 दिन के व्रत की शुरुआत की है, जिसका पारण 30 मार्च को महाअष्टमी पर होगा। वहीं, काफी लोग चढ़ती-उतरती ही व्रत पालन कर रहे हैं।

भक्तों की भी सुनें

भक्त शालिनी यादव ने बताया कि नवरात्रि के पहले दिन मां को नारियल-चुनरी और पैसा चढ़ाया। परिवार के लिए मिन्नतें की। जब से होश संभाली हूं, मां के मंदिर में आ रहीं हूं। अस्सी से आईं सोनी ने कहा कि हम लोग बचपन से ही मां के मंदिर में आते रहते हैं। माला, फूल, नारियल और चुनरी यथाशक्ति और श्रद्धा के अनुसार, हम मां को सब कुछ अर्पण करते हैं। भक्तों की ऐसी मान्यता है कि माता शैलपुत्री भय नाशक हैं। भक्तों में दर्शन मात्र से ऊर्जा का संचार हो जाता है। उनकी अराधना से धन, वैभव, कीर्ति, यश सब कुछ मिल जाता है। माता शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय के घर में जन्मी थीं। बाद में ये ही पार्वती के नाम से भगवान शंकर की अर्धांगिनी हुईं।

बोले स्वामी सम्पतकुमाराचार्य

काशी के स्वामी सम्पतकुमाराचार्य ने बताया कि चैत नवरात्रि में कलश स्थापना का मुहूर्त आज सुबह 10:03 मिनट तक है। ध्यान रहे कलश लोहे या स्टील का न हो। साफ मिट्टी से वेदिका बनाएं। इसमें जौ और गेहूं बोया जाता है। इसके बाद मिट्टी या फिर तांबे, सोने के कलश में स्थापित कर दें। कलश के सामने बैठ गणेशाम्बिका, वरुण, षोडशमातृका, सप्त घृत मातृका, नवग्रह आदि देवों का पूजन और पुण्यवाचन कराएं। इसके बाद षोडशोपचार पूजन, श्रीदुर्गासप्तशती का संपुट या साधारण पाठ भी कर सकते हैं। स्वामीश्री ने कहा कि नवरात्रि के अंतिम दिन पाठ की पूर्णाहुति दें। इस दौरान दशांश हवन और दशांश पाठ करना होगा। नवरात्रि पर कुंवारी कन्याओं के पूजन का विधान है। कन्याएं मां जगदंबा का प्रत्यक्ष विग्रह हैं। 1 से लेकर 3, 5, 7 या फिर 9 कन्या को देवी मानकर पूजा करें और अंतिम दिन भोजन कराएं।

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