फगुआ के संरक्षण को प्रयास कर रही संगीत नाटक अकादमी

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सगड़ी आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। भारतीय समाज से विलुप्त हो रही लोकगीत संगीत की पुरानी परंपराओं को संरक्षित एवं संवर्धित करने हेतु संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली के तत्वावधान में सोमवार को जमीन हरखोरी के प्राचीन शिव मंदिर पर होली गीत फगुआ के पुनरुत्थान हेतु ठाकुर सत्यनारायण सिंह एजुकेशनल सोसाइटीज जमीन हरखोरी द्वारा एक सेमिनार सह चौताल कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें नवयुवकों को डीजे पाश्चात्य संस्कृति गीत संगीत को छोड़ अपनी माटी से जुड़ी तथा जनमानस में मिली भाषा एवं संस्कृति को दर्शाने वाले लोकगीत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें अपनी सभ्यता संस्कृति और गीत संगीत पर गर्व करने के लिए प्रेरित किया गया।
गीतकार मुरलीधर एवं उनकी मंडली ने चैता के माध्यम से होली गीत की कई विधाओं में फगुआ सुनाया। झूमर, चौताल डेढ़ ताल, उलारा आदि को बखूबी प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना से हुई। तत्पश्चात उन्होंने सिया डालें राम गले वरमाला शिव शंकर दीनदयाला, ही हो सखी केकर संगे बालम रैना बीते बारहा चूड़ियां लिहा लाले लाल तथा तोरे झूलनी क कोर कटारी जुल्म कर करी डारी आदि मनमोहक प्रस्तुतियां दी। ज्ञानेंद्र मिश्रा ज्ञान ने कहा कि जो मिठास अपनी बोली अपने गीत संगीत में है वह कहीं नहीं मिल सकती। प्रदीप तिवारी ने कहा कि भारतीय संगीत एक दवा की तरह है जिससे कि शरीर मन मस्तिष्क स्वस्थ रहता है तथा समूह की भावना को विकसित करता है। रमेश यादव ने लोकगीतों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लोकगीत वह है जो एक भला आदमी एक सामान्य आदमी सोचता है उसके भाव ही जब गीतों के रूप में निकलते हैं तो वह लोकगीत होते हैं। राम उजागर सिंह ने सरकार तथा संस्था के इस पहल की सराहना की। इस मौके पर संतोष यादव, रमाकांत सिंह, अनिल कुमार सिंह, अविनाश सिंह, गोलू, सुरेश सिंह, कमल कांत सिंह, पारस सिंह, आदित्य, अनिरुद्ध, भोला, अमरजीत आदि उपस्थित रहे। अध्यक्षता रामनारायण सिंह ने की।
रिपोर्ट-प्रदीप तिवारी

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