अतरौलिया आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। सदकत उल फितर ईद के दिन की इबादतों में से एक खास इबादत है। पैगंबर ए इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो ताला अलैहे वसल्लम ने इसे जरूरी करार दिया। बाकायेदा इस का ऐलान भी अपने जमाने में करवाया। हर रोजेदार अपनी और अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से सदकत उल फितर निकालता था, जब तक रोजेदार सदकत उल फितर अदा नहीं कर देता है, उस वक्त तक उसका रोजा जमीनों आसमान के दरमियान लटका रहता है। उक्त बातें मौलाना मोहम्मद अब्दुल बारी नईमी पेश इमाम जामा मस्जिद अतरौलिया एवं अध्यापक मदरसा फैजे नईमी सरैया पहाड़ी ने कहीं।
उन्होंने कहा कि माहे रमजान के आखिर और ईद से पहले सदकत उल फितर इसलिए निकालने का हुकम दिया गया है ताकि अमीरों के साथ-साथ गरीब भी ईद की खुशियों में शामिल हो सके। अगर ईद उल फितर की नमाज पढ़ने से पहले इसे अदा कर दे तो यह उसके लिए कबीले कबूल जकात होगी और ईद की नमाज के बाद अदा करे, तो यह आम सदकों में से एक सदका है। रोजा में शैतान के बहकाने से जो कमी और खामी पैदा होती है, सदका उसे दूर कर देता है।
रिपोर्ट-आशीष निषाद