फूलपुर आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। वर्षाे पूर्व होली के त्यौहार मनाने के तौर तरीकों में काफी बदलाव हो गया। त्योहारों में अब वह बात नहीं रही सिर्फ फार्मेलटी पूरी की जाती है। पूर्व में होली का त्यौहार होलिका दहन की प्रक्रिया महीनों पूर्व शुरु हो जाती थी और त्योहारों में गांव के छोटे बड़े अमीर गरीब का पूरा सहयोग रहता था। होलिका के लिए बसन्त पंचमी पर होलिका स्थल पर रेड़ बिधि बिधान से गाड़ दिया जाता था और तभी से युवा उत्साह के साथ पत्ती उपला लकड़ी आदि होलिका स्थल पर इकठ्ठा करना शुरु करते थे और होलिका स्थल पर गीत संगीत के साथ कबीर बोल के हंसी मजाक भी होता था। परंतु वर्तमान समय में ये सारी व्यवस्थाएं धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं।
पूर्व में होलिका जलाने का अन्य गावों से मुकाबला होता थां किस गांव में आग की लपटें सबसे ऊपर उठ रही हैं। होलिका जलने के साथ रंग अबीर शुरु हो जाता था। गीत गवनई होती थी। अब तो न वह परम्परा रह गयी न वह प्यार और लगाव दिलो में रह गया। अब तो एक दिन पूर्व या उसी दिन मात्र परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। सब मिलाकर सिर्फ और सिर्फ फार्मेल्टी पूरी की जा रही है। क्षेत्र वासी कामता, बिनोद, अजदार, सतिराम यादव, अजय सिंह, चंदभान यादव, बतीस यादव, बहादुर यादव ने बताया कि हम लोगो के समय में बुजुर्ग त्योहारों को खुशियों के बीच मनाते रहे। हम सभी खुद ही उत्साहपूर्व होलिका दहन के लिए ईंधन इकठ्ठा करते थे। सूरज ढलते ही होलिका स्थल पहुंच कर रात काफी देर तक रुककर ईंधन आदि इकठा करते। कबीरा बोलते रिश्तो के हिसाब से गीत संगीत भी होते थे। परंतु अब वह बात नहीं, न वह लोग रह गए।
रिपोर्ट- मुन्ना पाण्डेय