अतरौलिया आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। शब-ए-कद्र रमजान की विशेष रातों में से है। यह रमजान की 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं, 29वीं रातों में पाई जाती है। इस रात में अल्लाह पाक ने कुरआन को लौह ए महफूज से आसमान ए दुनिया की तरफ एक साथ उतारा। फिर 23 वर्ष तक धीरे-धीरे पैगंबर ए इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो ताला अलैहे वसल्लम पर जरूरत के अनुसार वही के जरिए उतरता रहा। उक्त बातें मौलाना मोहम्मद अब्दुल बारी नईमी आज़मी, पेश इमाम जामा मस्जिद अतरौलिया एवं अध्यापक मदरसा अरबिया फैज ए नईमी सरैया पहाड़ी ने कही।
उन्होंने कहा कि इस रात में साल भर के आदेश लागू किए जाते हैं, और फरिश्तों को साल भर के कार्यों के लिए ड्यूटी पर तैनात किया जाता है। जिसने इस रात में ईमान और अच्छी नियत के साथ एबादत की, उसके साल भर के गुनाह बख्श दिए जाते हैं। कुछ उलमा के नजदीक रमजान उल मुबारक की 27वीं, रात शब-ए-कद्र होती है। लेकिन इन पांच और ताक रातों में अल्लाह की भरपूर इबादत करनी चाहिए, क्योंकि शब-ए-कद्र को पाने के लिए हजरत मोहम्मद रमजान के आखरी 10 दिनों का एतेकाफ करते थे। एतेकाफ शब ए कद्र पाने का बेहतरीन जरिया है।
रिपोर्ट-आशीष निषाद