आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। मुलायम सिंह यादव ने कभी आजमगढ़ में सच ही कहा था कि इटावा मेरा दिल है, तो आजमगढ़ दिल की धड़कन। उस समय लोगों ने इसे भले ही गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन वर्ष 2009 में जब आजमगढ़ की दोनों सीटों पर सपा का पत्ता साफ हो गया, तो मुलायम सिंह के दिल में इतनी पीड़ा हुई कि उन्होंने गढ़ बचाने के लिए 2014 में आजमगढ़ आकर कमान अपने हाथ ले ली।
उसका नतीजा भी सामने आया और मुलायम सिंह ने सपा का झंडा आजमगढ़ में गाड़ दिया। यह अलग बात है कि जीत का अंतर 63 हजार के आसपास होना उन्हें कहीं न कहीं से खल रहा था। शायद यही कारण था कि उन्होंने दोबारा यहां से चुनाव लड़ना मुनासिब नहीं समझा और अपनी विरासत अखिलेश यादव को सौंप दी। तब तक अखिलेश यादव सपा के मुखिया बन चुके थे सो उन्होंने बसपा से गठबंधन कर आजमगढ़ की सीट अपने हिस्से में ले लिया और ढाई लाख से ज्यादा मतों के अंतर से भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ को पटखनी दे दी।
यह अलग बात है कि वर्ष 2022 के चुनाव में उन्होंने करहल विधानसभा से जीत दर्ज करने के बाद आजमगढ़ लोकसभा की सीट से त्यागपत्र दे दिया। अब इसे जनता की नाराजगी कहें या संगठन की रणनीति में चूक कि 2019 के आम चुनाव में अखिलेश के आगे हारने वाले निरहुआ के सामने नेताजी के परिवार के धर्मेंद्र यादव को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके बाद भी अखिलेश ने इसे चुनौती मानते हुए 2024 के चुनाव में फिर धर्मेंद्र यादव को उतारा और अबकी धर्मेंद्र ने निरहुआ से सीट छीनकर साबित कर दिया कि यह सीट सपा का गढ़ रही है और यहां के लोगों के रग-रग में समाजवादी सोच विद्यमान है।
रिपोर्ट-सुबास लाल