आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। खरसहन दीदारगंज में चल रहे सप्तदिवसीय संगीतमयी श्रीराम कथा के तीसरे दिन प्रवचन करते हुए बाल ब्यास पं.कौशल किशोर जी महाराज ने कहा कि मनुष्य को जीवन में सन्मार्ग का अनुसरण सदैव करना चाहिए। जीवन में प्राप्त होने वाले सुख दुःख का हेतु मनुष्य द्वारा किये अपने कर्म होते हैं। परम् पिता परमात्मा आनंद स्वरूप हैं जिनकी सहज कृपा करुणा से समस्त ब्रह्माण्ड संचालित होता है।
बाल ब्यास जी ने प्रभु श्रीराम के दयाशीलता का वर्णन करते हुए कहा कि जिस समय लंका लड़ाई के मैदान में रावण श्रीराम जी से युद्ध करने के लिए उद्यत हुआ प्रभु के एक बाण से रावण का रथ टूट गया, शरीर रक्त रंजित हो गया। रावण ब्याकुल होने लगा भगवान राम ने करुणामय दृष्टि से शत्रु रावण को देख कर बोले दशानन तुम इस समय युद्ध करने योग्य नहीं हो। तुम राजमहल की ओर जाओ और आज आराम करो। पुनः स्वस्थ्य होने के बाद युद्ध करना। लज्जित लंकेश जब लंका लौटा तो उसकी आंखों से अश्रु धारा प्रवाहित हो रही थी। मंदोदरी ने कारण पूछा तो रावण सहज बोल पड़ा, जिस रघुनंदन राम के साथ मैंने ऐसा दुर्ब्यवहार किया उनकी मेरे प्रति युद्ध भूमि में ऐसी करुणा देख कर मैं आज हतप्रभ हूं। इस प्रकार कृपा करुणा की प्रशंसा शत्रु भी करते थे। इस अवसर पर राजाराम उपाध्याय, अखिलेश सिंह, महेंद्र सिंह, रामपाल, डॉ.लालता यादव, अशोक आदि उपस्थित रहे।
रिपोर्ट-प्रमोद यादव/ज्ञानेन्द्र कुमार