त्याग, भक्ति व मोहमाया से मुक्ति की प्रतिमूर्ति हैं भगवान भोले नाथ

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आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। समेदा में श्री दुर्गा जी मानव सेवा समाज ट्रस्ट द्वारा आयोजित पांच दिवसीय शतचण्डी महायज्ञ एवं संत प्रवचन के पहले दिन शतचण्डी महायज्ञ के महात्मय को सुनकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे। संत प्रवचन का शुभारंभ पूर्व सांसद संतोष सिंह, पूर्व आईएएस नरेंद्र बहादुर सिंह, पूर्व सांसद कनकलता सिंह द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित करके किया गया।
कथा वाचक महंत गिरी ने बताया कि शक्ति की देवी मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए शत चंडी यज्ञ किया जाता रहा है। इस यज्ञ के अनुष्ठान से देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मानव का कल्याण होता है। उन्होंने भगवान शिव की त्याग, मोह और मुक्ति की कथा का वर्णन किया।
कहा कि एक बार भगवती पार्वती के साथ भगवान शिव पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे। भ्रमण करते हुए वे एक वन-क्षेत्र से गुजरे विस्तृत वन-क्षेत्र में वृक्षों की सघन माला के मध्य उन्हें एक ज्योतिर्मय मानवाकृति दिखाई दी, जिसे देख जगत जननी पार्वती ने मुग्ध भाव से कहा “इतने विस्तृत साम्राज्य का अधिपति, इतने विशाल वैभव और ऐश्वर्य का स्वामी तथा त्याग की ऐसी अपूर्व निःस्पृह भावना! धन्य हैं भर्तृहरि। ”भगवान शिव ने आश्चर्य भंगिमा से माता पार्वती को निहारते हुए कहा कि “क्या देखकर इतना मुग्ध हो उठी हैं देवी?” माता पार्वती बोलीं “तपस्वी का त्याग भाव और क्या?” तीनों लोकों के स्वामी बोले “अच्छा! लेकिन मैंने तो कुछ और ही देखा देवी! तपस्वी का त्याग तो उसका अतीत था, अतीत के प्रति प्रतिक्रियाभिव्यक्ति से क्या लाभ? देखना ही था तो इसका वर्तमान देखतीं।” पार्वती ने ध्यानपूर्वक देखा, तपस्वी के निकट तीन वस्तुएं रखी थीं तीन भौतिक वस्तुएं, संग्रह का मोह दर्शाती वस्तुएं एक पंखा, एक जलपात्र और एक शीश आलंबक (तकिया)। वस्तुओं को देखकर पार्वती ने खेद भरे स्वर में कहा “प्रभो! निश्चय ही मैंने प्रतिक्रिया अभिव्यक्ति में शीघ्रता कर दी।”
इस अवसर पर नरेन्द्र बहादुर सिंह, प्रशांत सिंह, विजय बहादुर सिंह, स्वतंत्र सिंह मुन्ना, किशन सिंह, अनिकेत परिहार, कुणाल सिंह, तुषार सिंह, डा ऋत्विक परिहार, आलोक, रामचरण गौतम, सुधीर सिंह, लकी सिंह, रिंकू सिंह, धरभरन चौहान, अजय गौड़ आदि मौजूद रहे।
रिपोर्ट-प्रमोद यादव/ज्ञानेन्द्र कुमार

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