मेंहनगर आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। कस्बे के एक मैरिज लान में चौथे दिन आचार्य ज्ञानचंद द्विवेदी ने कहा कि श्री विष्णु पुराण में भगवान के माता-पिता का जिस रूप में चित्रण किया गया है, वह भी विचित्र है। नव दंपति विवाह के तत्काल बाद मंगलसूत्र धारण किए बड़े प्रेम और उत्साह के साथ विदा होते हैं। ऐश्वर्यशाली कंस वैभव के साथ पहुंचने के लिए चलता है। घोड़े की बागडोर हाथ में है। भाई बहन के प्रेम का दृश्य प्रकट हो रहा है। इतने में आकाशवाणी हुई कंस तेरी मृत्यु देवकी के आठवें गर्भ से है। क्षण भर में सारा प्रेम उड़ गया कंस ने केश पड़कर देवकी को रथ से नीचे खींचा, मारने के लिए समुद्यत। ऐसी स्थिति में देवकी मैया मौन। न कंस से कहती है मुझे छोड़ दो न वसुदेव से कहती है मुझे बचाओ।
ऐसी क्षमा, ऐसी शांति, ऐसी समता, ऐसा मौन वस्तुतः देवकी को उस कक्षा में पहुंचा देता है जो भगवान की माता बनने के योग्य हैं। अपने आराध्य पर दृढ़ विश्वास। वासुदेव जी कंस से भिड़े नहीं लड़े नहीं क्योंकि कंस अभिमानी है। अभिमानी के सामने बल एवं बुद्धि काम नहीं आती। अभिमानी को तो उसके अभियान का पोषण करके ही जीता जा सकता है। छः संतानों को कंस ने मार डाला सातवें सन्तान के रूप में बलराम जी और आठवीं संतान के रूप में श्री कृष्ण का प्राकट्य हुआ। जब भगवान के आने से पूर्व प्रकृति ने नवद्रव शुद्ध कर लिए।
भाद्र पद मास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, बुधवार, वृष लग्न ऐसे शुभ अवसर पर रात्रि के घोर अंधकार को चीरकर महान प्रकाश का उदय हुआ। वासुदेव देवकी शिशुभावापन्न होकर श्री कृष्ण को गोद में लेकर अपलक नेत्रों से निहारते हैं। समाचार फैलते ही नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की गूंज फैल गई।
रिपोर्ट-धीरज तिवारी