सृष्टिमीडिया आजमगढ़। सांझी संस्कृति के साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की 142वीं जयंती जनवादी लोकमंच आज़मगढ़ के तत्वावधान में राहुल चिल्ड्रेन एकेडमी रैदोपुर के सभागार में माध्यमिक शिक्षक संघ के महामंत्री इन्द्रासन सिंह की अध्यक्षता में मनायी गयी। गोष्टी से पहले प्रेमचंद द्वारा लिखित नाटक ‘बूढ़ी काकी’ का सफल मंचन किया गया।
कन्हैया लाल यादव ने कहा कि मुंशी प्रेमचन्द भारत में बोली जाने वाली दोनो बड़ी जुबानों हिंदी और उर्दू के सबसे बड़े साहित्यकार हैं। उन्होंने अपने साहित्य में दोनों संस्कृतियों व दोनों समुदायों को जोड़ने का काम करते हुए जनमानस को भारतीयता और राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया। डॉ.रवींद्र राय ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद शोषण से मुक्त समानतावादी समाज की स्थापना के लिए सुराज को सबसे बड़ा हथियार मानते रहे। उन्होंने अपने साहित्य के केंद्र में गरीबों, मज़लूमों, भूखों व नंगों को रखा। इसलिए पात्रों के नाम गोवर, होरी, धनिया, हरखू, झगड़ू, बोड़म आदि रखकर हिंदी साहित्य को गांव व गरीबों से जोड़ने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज प्रेमचंद की साहित्यिक परंपरा को नेपथ्य में डालने की साज़िश चल रही है। गोष्ठी में महताब आलम, राजेश, डॉ.बिंदु प्रजापति, इंद्रासन सिंह, अवधेश यादव, अनीस, शिवधन यादव, सर्वजीत, अंबिका पटेल, मृत्युंजय, अशरफ, मीनू राय, सरिता तिवारी, अरविंद आदि उपस्थित रहे। गोष्ठी का संचालन अनिल चतुर्वेदी ने किया।
रिपोर्ट-ज्ञानेन्द्र कुमार