मार्टिनगंज आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। जीवित्पुत्रिका व्रत- आस्था, त्याग और संकल्प का संगम है जिसे संतान की दीर्घायु और मंगलकामना के लिए माताएं करती हैं। यह व्रत मां की ममता का संकल्प है, जिसमें संतान की लंबी सांसों की कामना है। जिउतिया पर्व में मां का उपवास, पुत्र के जीवन का विश्वास है। निर्जला तपस्या, संतान की सुख-समृद्धि की अभिलाषा है। ममता की माला में पिरोया यह व्रत संतान के मंगल का संदेश देता है। रविवार 14 सितंबर को पुत्रवती महिलाएं निर्जला रहकर यह व्रत करेंगी। इसके एक दिन पूर्व शनिवार को नहाय-खाय के साथ व्रत की शुरुआत हुई।
इस पर्व में मातृशक्ति अपने पुत्र की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करते हुए पूरे चौबीस घंटे निर्जला उपवास कर व्रत रहती हैं। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 14 सितंबर रविवार को प्रातः 8.51 बजे आरंभ होकर 15 सितंबर सोमवार को प्रातः 5.36 बजे समाप्त होगी। रविवार को सूर्याेदय से पहले महिलाएं ओठगन करेंगी और सोमवार को प्रातः 6.27 बजे के बाद व्रत का पारण होगा। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बंगाल में बड़ी श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित गिरजा प्रसाद पाठक माता अष्टभुजी के पुजारी ने बताया कि इस व्रत का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत ही गहरा है। जीवित्पुत्रिका व्रत के प्रभाव से संतान को सुख ऐश्वर्य और लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पूजन के दौरान जीवित्पुत्रिका की कथा भी सुनाई जाती है। इसके बाद अगली सुबह स्नान आदि कर भगवान की पूजा कर व्रत का पारण किया जाता है और चांदी की ज्युतिया जीवित्पुत्रिका का प्रतीक धारण किया जाता है। त्योहार को लेकर बाजारों में विशेष चहल-पहल देखने को मिल रही है। चांदी की जिउतिया की दुकानों पर खरीददारी जोरों पर है, वहीं सोने की जिउतिया भी लोग खरीद रहे हैं। मान्यता है कि मन्नत पूर्ण होने पर माता चांदी या सोने की जीवित्पुत्रिका बनवाकर माता के चरणों में अर्पण करती हैं जिससे पुत्र को लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है।
ज्योतिषाचार्य श्री पाठक ने बताया कि इस व्रत के दौरान साफ सफाई और वाणी की मर्यादा मां की पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है। व्रत के समय किसी भी प्रकार का अपशब्द, नकारात्मक विचार वर्जित माने जाते हैं। इस पर्व में महिला बड़ी श्रद्धा के साथ पूजा करती हैं।
रिपोर्ट-अद्याप्रसाद तिवारी