चुनावी अग्नि परीक्षा में जमाली जीते, संगीता को मिली हार

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आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद अब वह लोग भी चर्चा में हैं, जिन्होंने चुनाव से पहले भाजपा का दामन थाम लिया था। चुनाव से पूर्व अथवा चुनाव के दौरान नेताओं का पाला बदल का खेल कोई नई बात नहीं है। अभी 2022 में हुए लोकसभा चुनाव में शिवपाल सिंह यादव के दो सिपहसालारों ने पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था, जबकि सपा के एक पूर्व विधायक ने भी भगवा चोला धारण करने में गुरेज नहीं किया था। एक बार फिर लोकसभा चुनाव होने को आया, तो पाला बदल का खेल भी तेज हो गया था।
पाला बदल की पटकथा तो पहले से ही लिखी जा रही थी, लेकिन समय के साथ उस समय तस्वीर साफ हो गई, जब मुबारकपुर से 2012 और 2017 में बसपा विधायक, 2014 के आम और 2022 में बसपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली लोकसभा चुनाव से पहले हाथी की सवारी छोड़ साइकिल के साथ हो लिए। हालांकि सपा ने बदले में उन्हें विधानपरिषद सदस्य का इनाम भी दिया। बसपा को एक और बड़ा झटका तो उस समय लगा, जब लालगंज की सांसद संगीता आजाद अपने पति आजाद अरिमर्दन के साथ भगवा चोला धारण कर लिया। अब सवाल यह उठता है कि हाथी की सवारी छोड़ने वाले कितना सफल हुए। इस पर गौर करें, तो तस्वीर साफ हो जाती है। जमाली का साथ तो सपा के लिए संजीवनी बन गई, लेकिन लालगंज सुरक्षित क्षेत्र में भाजपा के पक्ष में संगीता का जादू बेअसर साबित हो गया।
दूसरी ओर चुनाव से पहले 1984 में कांग्रेस से सांसद रहे डा. संतोष कुमार सिंह ने लखनऊ में भाजपा का दामन थाम लिया, तो पूर्व मंत्री यशवंत सिंह की भी भाजपा में वापसी हो गई, लेकिन दोनों बड़े नेता भी भाजपा को कमल खिलाने में कामयाबी नहीं दिला सके। यशवंत सिंह राजनीति के मंझे खिलाड़ी माने जाते हैं। उनकी गिनती जिले के कद्दावर नेताओं में होती है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, सपा संरक्षक रहे मुलायम सिंह यादव के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ के करीबी यशवंत सिंह की राजनीति में गहरी पैठ मानी जाती है। यशवंत वर्ष 1989 में जनता दल के टिकट पर पहली बार मुबारकपुर से विधानसभा से विधायक चुने गए थे। वर्ष 1996 में यशवंत ने बसपा का दामन थाम लिया था। प्रदेश में बसपा और भाजपा की गठबंधन सरकार बनी तो इन्हें मंत्री बनाया गया। समझौते के अनुसार छह माह बाद बीजेपी का सीएम होना था, लेकिन मायावती नहीं मानी और गठबंधन टूट गया।
उस समय यशवंत सिंह ने बसपा के कई विधायकों को तोड़कर जनतांत्रिक बसपा का गठन किया और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। भाजपा सरकार में भी वे आबकारी राज्य मंत्री रहे। इसी बीच वर्ष 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के सिंबल पर यशंवत सिंह आजमगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद फिर उन्होंने सपा का दामन थाम लिया।
यशवंत सिंह को मुलायम सिंह का काफी करीबी माना जाता था। इसकी बानगी भी देखने को मिली थी। वर्ष 2004 में मुलायम सिंह यादव ने पहली बार यशवंत सिंह को एमएलसी बनाया था। इसके बाद उन्हें फिर 2010 और 2016 में एमएलसी बनाया गया। अभी यशवंत सिंह का कार्यकाल 2022 तक था। यशवंत सिंह पिछले कुछ वर्षाे से सपा के अलग-थलग पड़ गए। यूपी में प्रचंड बहुमत से बीजेपी की सरकार बनी तो उन्होंने बीजेपी की तरफ रुख किया और सीएम योगी आदित्यनाथ को विधान परिषद भेजने के लिए खुद एमएलसी पद से त्यागपत्र दे दिया था।
रिपोर्ट-सुबास लाल

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