अमानवीयता: राजकीय बाल गृह में चार बच्चों की मौत, भगवान भरोसे है जिंदगी

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बच्चे यदि भूख लगने की बात कहते तो उन्हें खाने की जगह खरी-खोटी सुनाई जाती थी

लखनऊ। जिले के हजरतगंज के प्राग नारायण रोड स्थित राजकीय बाल गृह (शिशु) में चार बच्चों की मौत ने बाल गृह में चल रहे ‘जंगल राज’ की हकीकत बयां कर दी है। बच्चों को कायदे का खाना नसीब नहीं होता था। बच्चे यदि भूख लगने की बात कहते तो उन्हें खाने की जगह खरी-खोटी सुनाई जाती थी। उनके साथ मारपीट की जाती। हालात कितने खराब थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि करीब 75 बच्चों को मात्र सात कमरों में ठूस दिया जाता था। कमरों की दशा बेहद खराब थी। यहां बच्चों को जानवरों से भी बुरे हालात में रहना पड़ता था। इसी के चलते बच्चे बीमार पड़ जाते थे, लेकिन इनका इलाज करने की बजाए इन्हें ऊपर वाले के भरोसे छोड़ दिया जाता था। बीमार बच्चों को तब ही इलाज मिलता जब उनकी जान के लाले पड़ जाते थे। इसी के चलते गत दिनों तीन बच्चों की मौत हो गई थी। मंगलवार को एक और बीमार बच्चा मौत के मुंह में चला गया।

अधीक्षक को नोटिस जारी कर एक हफ्ते में माँगा गया स्पष्टीकरण

इन बच्चों को तबीयत खराब होने पर पास के ही सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां अंतरा, आयुशी व लक्ष्मी की सोमवार को मौत हो गई थी। वहीं हालत गंभीर होने पर दीपा को ट्रॉमा सेंटर रेफर किया गया था। इलाज के दौरान मंगलवार को उसने भी दम तोड़ दिया। कई बच्चों के बीमार होने और चार की मौत का पता चलने पर जिला प्रोबेशन अधिकारी समेत अन्य अधिकारी बाल गृह पहुंचे, लेकिन यह सब औपचारिकता से अधिक कुछ नजर नहीं आया। टीम ने एक माह से दो साल तक के बच्चों की सेहत के बारे में जानकारी लेने के साथ ही रखने और आहार आदि के बारे में जानकारी ली। पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए राजकीय बाल गृह के अधीक्षक को नोटिस जारी कर एक हफ्ते में स्पष्टीकरण मांगा है। इसके साथ मैजिस्ट्रीरियल जांच के लिए जिलाधिकारी को पत्र भी लिखा गया है।

सात कमरों में 75 बच्चों को रखा गया

जांच तो होती रहेगी, लेकिन बाल गृह के हालात यह थे कि राजकीय बाल गृह (शिशु) के सात कमरों में 75 बच्चों को रखा गया था। इनमें एक माह से दो साल तक के 35 बच्चों को एक ही कमरे में रखा गया है। इसे देखते हुए अधिकारियों ने दो साल तक के बच्चों में डिस्टेंस मेंटेन करने के लिए कमरों की संख्या बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। अफसरों का दावा है कि बच्चों की देखभाल के 58 कर्मचारियों को लगाया गया है। इसके साथ ही बाल रोग विशेषज्ञ भी बाल गृह में रखे गए सभी बच्चों की सेहत पर नजर रखे हैं। अभी भी कई बच्चों की हालत गंभीर है। उन्नाव में लावारिस पाए जाने के बाद दो माह के मून को बाल गृह लाया गया था। सिविल हॉस्पिटल में भर्ती स्पेशल चाइल्ड मून भी जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा है। डॉक्टरों के अनुसार बच्चा रेड ब्लड सेल अपालॉजिया और थंब साइको पिनिया से ग्रसित है। इसमें बच्चे के ब्लड सेल्स टूटने के साथ ही बोन मैरो बनना बंद हो जाता है।

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