मणिकर्णिका घाट पर रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन होता है प्रसिद्ध आयोजन
वाराणसी (सृष्टि मीडिया)। प्राचीन नगरी काशी में आज महाश्मशान की होली मनाई जा रही है। मणिकर्मिका घाट पर कोई जलती चिताओं की राख और चिता भस्म से होली खेल रहा, तो कोई डमरू की निनाद पर थिरक रहा है। घाट पर राख की परत जम गई है। पूरा माहौल भक्तमय हो गया है। ऐसी मान्यता है कि मणिकर्णिका घाट पर रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन यानी आज बाबा विश्वनाथ यहां चिताओं से निकलने वाले भूतों और औघडों के साथ तांडव करते हैं। इस दौरान उनका सबसे विराट अड़भंगी स्वरूप दिखता है।

हर हर महादेव की गूंज
आज इस मसान की होली पर 4-5 लाख श्रद्धालु, युवा और प्रोफेशनल फोटोग्राफर्स जुट चुके हैं। ये होली मणिकर्णिका घाट पर चारों ओर से देखी जा रही है। गंगा में बोट से श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के गंगा द्वार से, सिंधिया घाट के आगे से और मणिकर्णिका घाट के ऊपर खेली जा रही है। होली 100 डमरूओं की निनाद के साथ शुरू हुई। ये होली शाम 6 बजे तक जारी रहने वाली है। बाबा महाश्मसान समिति के अध्यक्ष और भस्म होली के आयोजक चैनू प्रसाद गुप्ता के अनुसार, सबसे पहले मणिकर्णिका घाट स्थित मसान नाथ मंदिर में गेरुवा लुंगी और गंजी धारण किए 21 अर्चक बाबा मसाननाथ की आरती उतारी गई। 12 बजकर 05 मिनट पर आरती शुरू होकर 45 मिनट तक चली।

काफी खास है परम्परा
बाबा मसाननाथ की शिवलिंग पर 30 किलो फल-फूल, माला और 21 किलोग्राम प्रसाद चढ़ाया गया। इसके बाद लोग दौड़ते हुए चिताओं के पास पहुंच रहे हैं। यहां पर चिताओं की राख को अपने देह पर मलते हैं। वहीं, अधजली चिताओं पर गंगाजल और थोड़ी सी भस्म छिड़क दी जाती है। जिससे उनका भूत या आत्मा को जाते-जाते बाबा का प्रसाद मिल जाए। बाबा से यह प्रार्थना की जाती है कि मुक्ति अपने बढ़िया दिया है तो ऊपर भी अच्छा स्थान दिया जाए। वहीं, चिताओं की जलती राख को लोग शिव की प्रसाद की तरह से अपने मुंह में डालेंगे। गौना के बाद मां पार्वती को श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में विराजमान कर बाबा आज यहां पर होली मना रहे हैं। मान्यता है कि रंग भरी एकादशी पर गौना कराकर लौटते समय बाबा विश्वनाथ ने देवताओं के साथ खूब होली खेले थे। लेकिन, भूत-प्रेत और औघड़ आदि के साथ होली नहीं खेल पाए। इसी वजह से श्रीकाशी विश्वनाथ ने महाश्मशान में भूतों की होली खेली। चैनू प्रसाद गुप्ता ने बताया कि उन्हीं की पीढ़ी 350 साल से चिता-भस्म की होली करा रही है। आज से करीब 16-17 साल पहले चिताओं के साथ सीधे होली नहीं खेली जाती थी। जब मंदिर में जगह नहीं बची तो हम लोगों को बाहर निकलना पड़ा। यह हुल्लड़बाजी और बाबा का नटराजन नृत्य देख पूरी दुनिया चकित हो उठी। तब से हर साल रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन चिताओं पर होली खेलने जानी लगी।
बीएचयू की छात्राएं और विदेशी भी थे मगन
देश-विदेश में चर्चित मसान की होली को देखने के लिए कई शहरों और विदेशों से लोग पहुंचे थे। उन पर होलियाना रंग चढ़ा था। अबीर-गुलाल से सराबोर बीएचयू के छात्र व छात्राओं की टोलियां भी बाबा का दर्शन कर झूम रही थीं। वहीं, मसाने की होली को कैमरे में कैद करने के लिए हर ओर होड़ मची थी। लोग कैमरे व मोबाइल से वीडियो बनाने व फोटो खींचने में लगे थे, वहीं, घाट पर करीब दर्जन भर ड्रोन कैमरे से भी इस अनूठी होली की जीवंतता को कैद किए।