विदेशियों को भी भाता है अजमतगढ़ और बड़ैला ताल का कमलगट्टा

शेयर करे

पटवध आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। अपना जनपद प्राकृतिक संपदा से भी परिपूर्ण है। सगड़ी तहसील के अजमतगढ़ स्थित सलोना ताल और सदर तहसील के बड़ैला ताल अपने प्राकृतिक सौंदर्यता का अहसास कराते हैं, तो वहीं आसपास के किसानों को आर्थिक संबल भी प्रदान करते हैं। ताल में स्वतः उगने वाला कमलगट्टा विदेशियों को भी खूब भाता है। कोलकाता और वाराणसी के कारोबारी आसपास के किसानों को पहले ही अपना आर्डर भेज देते हैं और फल तैयार होने पर उसे खरीदकर ले जाते हैं। विदेशों में इसे पौष्टिक आहार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। चीन के अलावा थाइलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, इंग्लैंड और नेपाल जैसे देशों में इसकी जबरदस्त डिमांड है।
जिले में दो बड़े ताल हैं, जिनका क्षेत्रफल 20 हजार हेक्टेयर से भी अधिक है। पहले कमलगट्टा का इस्तेमाल लोकल स्तर पर होता था और किसान कौड़ियों के दाम इसे बेच देते थे। हाल के कुछ वर्षों में इसे खरीदने के लिए कोलकाता और वाराणसी से कारोबारी आ रहे हैं। वे दो से तीन सौ रुपये प्रति किलोग्राम की दर से कमलगट्टा खरीदकर ले जाते हैं।
अजमतगढ़ के व्यापारी शंभू और अशोक ने बताया कि हर साल सितंबर से अक्तूबर के बीच कमलगट्टा बाहर भेजा जाता है। वाराणसी के कारोबारी राधेश्याम और दीपक जैन ने बताया कि करीब पांच से सात वर्ष पहले चीन समेत कुछ देशों में रह रहे भारतीयों ने ही इसकी डिमांड की थी। इसके बाद से मांग बढ़ती गई। बाहर भेजने पर डेढ़ से दो हजार रुपये किलो की कीमत आसानी से मिल जाती है। स्थानीय किसानों को इसका आर्डर पहले ही दे दिया जाता है। कमल के फूल के सूखने पर उसके अंदर से जो बीज निकलता है, उसे कमलगट्टा कहते हैं। खास बात यह कि यह ज्यादातर जगहों और बड़े तालों में खुद से पैदा होता है। किसान सिर्फ ताल से कमल के फूल निकालकर सुखातेहैं। फिर उसमें से कमलगट्टा निकालते हैं। कमलगट्टा का इस्तेमाल पूजन सामग्री में भी किया जाता है। कमल के फूल से निकलने की वजह से इसे मां लक्ष्मी का प्रिय माना गया है। कमलगट्टा बीपी, शुगर समेत कई अन्य रोगों में भी बेहद कारगार माना जाता है। कृषि विज्ञान केंद्र लेदौरा के अध्यक्ष डा. एलसी वर्मा ने कहा कि यह ताल के आसपास के किसानों के लिए बड़ा आर्थिक संबल है।
रिपोर्ट-बबलू राय

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *