आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। राजनीति में कब क्या हो जाएगा, इसे कोई नहीं जानता। एक समय वह भी था जब बसपा के टिकट के लिए मारामारी होती थी। प्रत्याशी हाथी का निशान पाने के लिए बेचैन रहा करते थे। यह बेचैनी कम होनी शुरू हुई तो फिर कभी बढ़ी ही नहीं। कारण कि समय के साथ बसपा सफलता से दूर होती गई। अठरहवीं लोकसभा चुनाव का परिणाम तो फिलहाल यही संदेश दे रहा है। 33 साल बाद तीसरी बार जिले में हाथी की चाल पूरी तरह से सुस्त हो गई। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में तीसरे स्थान पर पहुंची बसपा अठरहवीं लोकसभा के चुनाव में भी उससे ऊपर नहीं उठ सकी और उसके दोनों प्रत्याशियों को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। इस प्रकार वर्ष 1991, 2014 और 2024 के चुनाव में हाथी की चाल पूरी तरह से सुस्त नजर आई। बसपा का गठन वर्ष 1984 में कांशीराम ने किया था और वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव से पार्टी ने प्रत्याशी उतारना शुरू किया। पहली ही बार में आजमगढ़ में बसपा के रामकृष्ण यादव ने जनता दल की लहर में खाता खोल दिया था, लेकिन उसके बाद उन्हें दोबारा जीत नसीब नहीं हुई थी। 1991 में रामकृष्ण यादव तीसरे स्थान पर चले गए। 1996 में पार्टी ने रामकृष्ण को फिर मौका दिया, लेकिन वह सपा के रमाकांत के आगे हार गए। उसके बाद बसपा ने अकबर अहमद डंपी को उतारना शुरू किया, तो 1998 में बसपा की झोली में सीट वापस आ सकी। 1999 में रमाकांत के आगे डंपी हार गए, तो पार्टी ने रमाकांत को टिकट दे दिया। उसका लाभ भी मिला और सीट फिर बसपा के खाते में आ गई। रमाकांत की सपा सेे नजदीकियों के कारण बसपा ने उनकी सदस्यता समाप्त करा दी, तो 2008 में उपचुनाव का सामना करना पड़ा और रमाकांत भाजपाई हो गए, तो उस समय बसपा ने फिर डंपी को उतारा तो सीट बरकरार रह सकी, लेकिन 2009 के चुनाव में भाजपा के रमाकांत के आगे डंपी नहीं टिक सके। 2014 में बसपा ने मुलायम सिंह के खिलाफ शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा, लेकिन वह तीसरे स्थान पर चले गए। 2019 में सपा से गठबंधन के कारण बसपा ने प्रत्याशी ही नहीं उतारा, जबकि 2024 के चुनाव में बसपा के मशहूद अहमद तीसरे स्थान पर रहे।
अब बात करते हैं लालगंज (सुरक्षित) सीट की तो वहां से 1989 में डा. बलिराम तीसरे नंबर पर रहे। 1991 में पार्टी ने फौजदार को जिम्मेदारी सौंपी, लेकिन वह भी तीसरे स्थान से ऊपर नहीं पहुंच सके।
1996 में डा. बलिराम को फिर मौका मिला तो वह जिले के दूसरे बसपा सांसद बने। उसके बाद 1998 में सपा के दरोगा सरोज ने सीट छीन ली। 1999 में फिर बलिराम सांसद बने, तो 2004 में फिर सपा के दरोगा सरोज ने सीट छीन ली, लेकिन 2009 में बलिराम ने सीट वापस ले ली। 2014 के मोदी लहर में भाजपा की नीलम सोनकर के हाथों बसपा ने फिर लालगंज की सीट गंवा दी। 2019 में सपा के साथ गठबंधन हुआ, तो बसपा की प्रत्याशी संगीता आजाद ने सीट भाजपा से छीन ली। 2024 में संगीता के भगवा चोला धारण करने के बाद बसपा ने इंदू चौधरी को मैदान में उतारा, लेकिन वह तीसरे पायदान पर पहुंच गईं।
रिपोर्ट-सुबास लाल