कुर्बानी के जानवर के एक-एक बाल के बदले मिलती है एक-एक नेकी

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अतरौलिया आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। इस्लामी साल के आखिरी महीना जिल्हिज्जा की 10 तारीख को ईद उल अजहा मनाया जाता है। इस दिन मस्जिदों और ईदगाहों में दो रकात नमाज पढ़ने के बाद कुर्बानी के फराइज को अंजाम दिया जाता है। उक्त बातें मौलाना मोहम्मद अब्दुल बारी नईमी आजमी पेश इमाम जामा मस्जिद अतरौलिया ने कही।
उन्होंने कहा कि कुर्बानी हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है जो उन्होंने बेटे की कुर्बानी की शक्ल में उस समय पेश किया था। जब खुदा की तरफ से उन्हें ख्वाब में दिखाया गया था, उन्होंने जब इसकी चर्चा अपने बेटे इस्माइल से किया तो बेटा फौरन रजामंद होकर अपने बाप से कहा जो आपको आदेश दिया गया है, उसको पूरा करिए। मुझे सब्र करने वाला पाएंगे। हजरत इब्राहिम और हजरत इस्माइल के इस जजबा-ए- फेदाकारी को इस्लाम का नाम दिया गया। जब आपने बेटे को पेशानी के बल जमीन पर लेटा दिया हजरत इब्राहिम ने फरमार्बदारी, बंदगी, तस्लीम व रजा की जो उम्दा मिसाल पेश की, वह अल्लाह की बारगाह में कबूल होकर कयामत तक के लिए नमूना ए अमल करार पाई और तमाम मुसलमान को उनके अमल की पैरवी का हुक्म दिया गया। कुर्बानी के जानवर के एक-एक बाल के बदले एक-एक नेकी मिलती है।
उन्होंने कहा कि कुर्बानी के दिनों में मुसलमान का कोई अमल कुर्बानी करने से ज्यादा अल्लाह को प्यारा नहीं। कुर्बानी का जानवर कयामत के दिन अपने सींगों, बालों और खुरों के साथ आएगा। कुर्बानी का खून जमीन पर गिरने से पहले अल्लाह ताला के यहां कबूल हो जाता है। कुर्बानी एक अहम इबादत है, जिसका कोई बदल नहीं। कुर्बानी हमें बहुत इहतियात से करने की जरूरत है, किसी भी ऐसी हरकत से पूरे तौर पर बचें, जो हमारे लिए परेशानी का सबब हो ,पूरी बेदारी और अकलमंदी का सबूत दे। उन्होंने कहा कि मरकजी जमा मस्जिद अतरौलिया में 17 जून को सुबह 7.30 बजे ईद उल अजहा की दो रकात नमाज पढ़ कर अपने-अपने घरों में कुर्बानी के फराइज को अंजाम दें।
रिपोर्ट-आशीष निषाद

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