तांत्रिकों के जाल में फंसे परिजनों ने बच्चों की जान बचाने को उठाया सही कदम

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स्वास्थ्य विभाग का निर्देश : आडंबरों और ढोंगियों के चंगुल में फंसने के बजाय अस्पताल में जाए

वाराणसी। कुपोषित बच्चों को ठीक कराने के चक्कर में लोग तांत्रिकों और अंधविश्वास के चक्कर बुरी तरह से फंस रहे हैं। इसको लेकर वाराणसी के स्वास्थ्य विभाग द्वारा आज एक सूचना जारी की गई। इसमें दो केस स्टडी के साथ बताया गया है कि आडंबरों और ढोंगियों के चंगुल में फंसने के बजाय अस्पताल में जाए। ठगों ने कुपोषित बच्चों की तबियत और भी खराब कर दी।

हास्पिटल में बढ़ने लगा बच्चे का वजन

पहला मामला आराजीलाइन स्थित अयोध्यापुर निवासी अभिषेक मौर्य के सात महीने के बेटे ध्रुव का है जिसने मां का दूध पीना लगभग छोड़ दिया था। ऊपर से आहार लेते ही उसे उल्टी-दस्त होने लगते। उसका शरीर सूखता जा रहा था। परिजनों को लगा कि यह सब किसी के टोटका कर देने की वजह से हुआ है। तब उन्होंने चंदौली के फेसुड़ा में एक ओझा के यहां झाड़-फूंक कराना शुरू किया। ओझा ने ध्रुव को एक ताबीज पहनाया और कहा कि यह ताबीज जैसे-जैसे पुराना होगा, बच्चा उतना ही स्वस्थ होता जाएगा। मगर, हुआ इसका ठीक उल्टा। ताबीज पहनाने के बाद जैसे-जैसे दिन गुजरते गए, बच्चे की हालत और बिगड़ती गई। ध्रुव की मां पूनम ने बताया कि एक दिन उसके घर पर आशा कार्यकर्त्री आर्इं। उन्होंने समझाया कि वह कुपोषित है और उसे तत्काल इलाज की जरूरत है। आशा ने ध्रुव को पोषण पुनर्वास केंद्र में बीते छह दिसंबर को भर्ती कराया। तब उसका वजन 7.88 किलोग्राम था। भर्ती होने के बाद 14 दिनों तक चले इलाज में ध्रुव का वजन बढ़कर 9 किलोग्राम हो गया।

तांत्रिक ने बताया प्रेत से जुड़ा मामला

दूसरा मामला महमूरगंज की पूजा की आठ महीने की बेटी संतोषी का है। वजन लगातार कम होने से उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी। तब एक रिश्तेदार के बताने पर वह भेलूपुर में रहने वाले एक तांत्रिक के यहां पहुंची। तांत्रिक ने बताया कि उसकी बेटी पर प्रेत बाधा है। यह प्रेत उसकी बेटी के शरीर का खून पी रहा है, इसी से वह कमजोर होती जा रही है। प्रेत बाधा को दूर करने के नाम पर, तांत्रिक उससे धन ऐठता रहा। लेकिन बेटी ठीक नहीं हुई। बेटी के बीमार होने की जानकारी होने पर आशा कार्यकत्री मंजू उसके घर आई। एनआरसी में बीते आठ दिसंबर को भर्ती कराया। उसका वजन छह किलो 50 ग्राम था। 14 दिनों के बाद वजन बढ़कर आठ किलोग्राम हो चुका है।

सुनें विदिशा शर्मा की

इन मामलों के बाबत पंडित दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र की आहार सलाहकार विदिशा शर्मा बताती हैं कि यह कहानी सिर्फ ध्रुव और संतोषी की ही नहीं है। यहां भर्ती होने वाले उनके जैसे अन्य कई बच्चों के अभिभावक भी ध्रुव और संतोषी के परिजनों की ही तरह भ्रम की स्थितियों से गुजर चुके होते हैं। कुपोषण की समस्या से जूझ रहे बच्चों की बिगड़ती हालत का कारण वह जादू-टोना मानकर पहले वह झाड़फूंक कराते हैं और जब स्थितियां ज्यादा खराब हो जाती हैं तब उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है। बच्चों में कुपोषण का लक्षण नजर आता है, तो उसे तत्काल स्वास्थ्य केंद्र और एनआरसी ले जाना चाहिए।

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