भूली बिसरी याद बनकर रह गया है फगुआ, चौताल

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मार्टिनगंज आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। आधुनिकता की चपेट में होली का त्यौहार अपने पुरानी परंपरा से हटकर हो गया है जिसके चलते होली का त्यौहार अब खराब लगने लगा है। पहले होली पर मचने वाला हुड़दंग अब अश्लीलता का रूप ले लिया है। पहले लोग पारंपरिक रूप से चौताल फगुआ गाया करते थे लेकिन अब उसका स्थान डीजे ने ले लिया है। डीजे की धुन में युवा पीढ़ी मदमस्त होकर होली में अश्लीलता पर उतर आती है जबकि पहले गांव में ढोलक मजीरे की धुन पर गाए जाने वाला पारंपरिक गीत फगुआ अब भूली बिसरी याद बनकर रह गया है।
हरि चतुर्वेदी ने बताया कि चौताल को गाने वाली टोली लोगों के दरवाजे सहित गांव के चट्टी चौराहों पर बैठकर फगुआ गाती थी। दूसरे गांव के लोग भी इसमें शामिल होते थे। होली के दिन तो युवा और बुजुर्ग बच्चों की टोली फगुआ गाते हुए पूरे गांव में घूमती थी। लोग जोगीरा गाते हुए सबके दरवाजे पर जाते थे और अबीर गुलाल के साथ होली खेलते थे। लेकिन अब तो वह समय एक कहानी बनकर रह गया है। बच्चे अब मोबाइल में घुसे रहते हैं। रंग पिचकारी फगुआ क्या होता है उन्हें पता ही नहीं। होली के दिन डीजे पर अश्लील गानों पर नाच गाकर होली मनाते हैं।
सुंदर राजभर ने बताया कि एक समय वह भी था जब बसंत शुरू होती थी गांव वालों की टोली निकालकर ढोलक मंजीरा लेकर दरवाजा पर बैठकर चौताल का दौर शुरू हो जाता था। देर रात तक लोग फगुआ गीतों का आनंद उठाते थे। अब आधुनिक दौर में पुरानी परंपराओं का स्थान डीजे ने ले लिया है। पहले जहां लोगों को मस्ती के लिए ठंडाई का प्रयोग होता था आज वह स्थान दारु शराब ने ले लिया है अब तो फगुआ सुनने को भी नहीं मिलता।
रिपोर्ट-अद्याप्रसाद तिवारी

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