डाला छठ में हर भोजन का पंरपरा संग वैज्ञानिक आधार: गिरजा शंकर पाठक

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आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। सूर्य षष्ठी व्रत डाला छठ के पूर्व के दो दिन में किए जाने वाले भोजन का अपना अलग महत्व है। परंपरा के साथ इसका वैज्ञानिक आधार भी है। हर दिन के लिए भोजन का निर्धारण आंतरिक शुद्धता को ध्यान में रखकर किया गया है, क्योंकि इस पर्व में वाह्य के साथ ही अन्तः को भी शुद्ध रखने की मान्यता है। यही कारण है कि व्रती महिलाएं चौथ के दिन से ही सुपाच्य भोजन ग्रहण करती हैं। इस क्रम में मंगलवार को व्रती महिलाएं भोजन में लौकी मिश्रित चने की दाल के साथ चावल ग्रहण करेंगी। भोजन में सेंधा नमक का उपयोग किया जाएगा। यह बातें माता अठरही धाम के पुजारी पंडित गिरजा पाठक ने भक्तों के बीच सोमवार को कहीं। बताया कि लौकी और चावल जल्दी पच जाता है। इसी प्रकार चौथ को हल्का भोजन लेने के दूसरे दिन बुधवार को यानी पंचमी को दिन भर महिलाएं निराजल व्रत रहेंगी और शाम को एक बार भोजन ग्रहण करेंगी। इस दिन को बिहार में बोलचाल की भाषा में खरना कहा जाता है। शाम को गाय के दूध में गुड़ व साठी के चावल का खीर और शुद्ध आटे की पूड़ी का भोग लगाने के बाद व्रती महिलाएं एक बार ग्रहण करेंगी। इसके पीछे भी कारण यह है कि गुण और साठी के चावल को काफी सुपाच्य माना जाता है। यानी पहले अर्घ्य के दिन पेट में अन्न का अंश नहीं बचेगा और महिलाएं वाह्य के साथ आंतरिक रूप से भी शुद्ध रहकर पूजा करेंगी।
रिपोर्ट-सुबास लाल

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