माता अठरही धाम में पैर रखने के साथ होता ऊर्जा का संचार

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आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। जनपद मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर आजमगढ़-जौनपुर मुख्य मार्ग से बरदह-मार्टीनगंज मार्ग पर महुजा नेवादा गांव में माता अठरही देवी का मंदिर स्थित है। अठरही धाम पर कदम पड़ते ही भक्तों के मन में ऊर्जा का संचार होने लगता है।
देवी मंदिर तक श्रद्धालु अपने निजी साधन या अन्य संसाधनों से भी पहुंच सकते हैं। कभी 18 गांवों के लोग देवी की आराधना करने के लिए पहुंचते थे, लेकिन अब कई जनपदों के लोग पहुंचते हैं। रास्ता दुरूह होने के बाद भी हर मंगलवार को विशेष भीड़ होती है, तो लगन में मां को साक्षी मानकर लोग शादियां भी करते हैं। किंवदंती है कि लगभग 800 साल पहले जब गन्ने की पेराई पत्थर के कोल्हू से होती थी, तो उसी कोल्हू को लाने के लिए जैराम बाबा गए थे। जो कोल्हू उन्हें पसंद आया, वह अपने स्थान से हिलता नहीं था। व्यापारी से कहे कि इसी को ले जाएंगे। व्यापारी ने कहा ठीक है, यदि नहीं गया तो पैसा वापस नहीं होगा। बाबा जैराम ने दो रुपये चार आना में कोल्हू खरीद लिया और हिंगलाज पर्वत की तरफ बढ़े। रास्ते में एक वृद्धा दिखी। उसने पूछा कहां जा रहे हो, तो बाबा ने पूरी बात बताई। उसके बाद माता ने दर्शन दिया और एक पत्थर दिया कि ले जाकर उसे छुआ दो, तब मैं साथ-साथ चलूंगी। उसी पत्थर की पूजा आज माता अठरही के रूप में की जा रही है। मान्यता है कि माता के मंदिर में कोई भी मन्नत यदि दिल से मानता है, तो वह अवश्य पूरी होती है। जिले के अलावा गोरखपुर, जौनपुर, गाजीपुर सहित पूर्वांचल के श्रद्धालु दर्शन-पूजन करने के लिए आते हैं। अठरही मां के दरबार में रक्षा बांधने व पत्थर पलटकर मन्नत मांगने की मान्यता है।
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यह स्थान किसी सिद्ध पीठ से कम नहीं है। आदि शक्ति माता अठरही की पूजा होती है। वैसे तो अठारह गांव वालों से पूजा लेने आईं थीं, लेकिन आज प्रदेश के कोने-कोने से लोग आ रहे हैं। आस्था और विश्वास के साथ की गई मन्नत माता अवश्य पूरी करती हैं।
-गिरजा शंकर पाठक, पुजारी।
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माता अठरही की आराधना करने से बहुत ही आत्मसंतुष्टि मिलती है। जबसे माता जी की आराधना शुरू किया तबसे मेरा कोई काम आज तक नहीं रुका। अगर किन्हीं कारणों से गांव में नहीं रहती या नहीं पहुंच पाई, तो भी दिल से उनका स्मरण करके उन्हें नमन जरूर करती हूं।
-उर्मिला देवी, साधक
रिपोर्ट-सुबास लाल

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