देवगांव में 8वीं मोहर्रम को निकला दुलदुल का मातमी जुलूस

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लालगंज आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। देवगांव में मोहर्रम की 8वीं तारीख वो दिन जब हर दिल कर्बला के दर्द से भीग उठता है, हर ज़ुबान से बस एक ही सदा बुलंद होती है या हुसैन। ऐसे माह-ए-ग़म में देवगांव की गलियों से गुज़रा इमामे हुसैन की याद में निकला दुलदुल का मातमी जुलूस, जिसमें नौजवानों की टोलियों ने अश्कों के साथ अपने गम व वफा का इज़हार किया।
जुलूस की शुरुआत सैफ जैदी के आजाखाने से हुई, जहां मजलिस में उन्होंने इमाम हुसैन की उस अज़ीम कुर्बानी को याद किया जो उन्होंने इंसाफ, सच्चाई और इंसानियत के लिए दी। उन्होंने कहा अंजुमनें अलग हो सकती हैं, लेकिन हुसैन का नाम सबका है। हुसैन मज़हब नहीं, पैग़ाम हैं, ज़ुल्म के खिलाफ़ डट जाने का।
जुलूस में शामिल दुलदुल वह प्रतीकात्मक घोड़ा जिसे फूलों और चादरों से सजाया गया था, इमाम हुसैन के उस साथी की याद दिला रहा था जो कर्बला की तपती रेत पर भी वफ़ा से पीछे नहीं हटा। जैसे ही दुलदुल ज़ियारत के लिए निकला, फिज़ा में या हुसैन! की गूंज उठी, आंखों से अश्क बह निकले, और दिलों में कर्बला की तपिश एक बार फिर जाग उठी। मातमी धुनों पर बाज़ार, मोहल्ले और गलियों से होता हुआ यह जुलूस गब्बन हुसैन की बारगाह पहुंचा, फिर कुरैशी मोहल्ला होते हुए कर्बला शरीफ पर इसका समापन हुआ। रास्ते भर अकीदतमंदों ने अलम और दुलदुल की ज़ियारत की और अपनी श्रद्धा पेश की।
इस अवसर पर पुलिस प्रशासन पूरी तरह सतर्क रहा। हर नुक्कड़ पर तैनात सुरक्षाबलों ने जुलूस को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न करवाया। मातमी जुलूस ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि हुसैनी यादें न तो वक्त की मोहताज हैं, न सरहदों की। जब तक दिलों में वफ़ा ज़िंदा है, तब तक कर्बला का पैग़ाम ज़िंदा रहेगा।
रिपोर्ट-मकसूद अहमद

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