रानीकीसराय आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। स्थानीय क्षेत्र के साकीपुर में राम जानकी मंदिर प्रांगण में चल रही श्रीराम कथा में मंगलवार को कथा वाचक ने कहा कि भारद्वाज ऋषि के आश्रम में पहुच कर श्रीराम ने जीवन के नैतिक मूल्यों का ज्ञान अर्जित किया। इधर अयोध्या में राजा दशरथ प्राण त्याग देते हैं और ननिहाल से पहुंचते ही भरत बृतांत जानते ही श्रीराम को मनाने बन को प्रस्थान करते हैं।
कथा वाचक विद्याधर दास ने कहा कि बन में बिचरण के दौरान श्रीराम भारद्वाज ऋषि के आश्रम पहुंचते ही ऋषि श्रीराम को सांसारिक, भौतिक सभी पहलुओं के बाबत बिस्तार से बताते हैं। चित्रकूट में विश्राम के बाद आगे प्रस्थान की तैयारी करते हैं। इधर अयोध्या में राजा दशरथ पुत्र बियोग में प्राण त्याग देते हैं। भरत शत्रुघन को ननिहाल से बुलाया जाता है। भरत अयोध्या पहुचते ही श्रीराम को मिलने के लिए महल में खोजते है। महल मंे न पाकर माता कैकेई से पूछते हैं और बृतांत जानते ही क्रोधित हो जाते हैं। भरत कैकेई के संवाद में भाई के प्रेम की एक अभिलाषा दिखती है जो युगान्तर तक याद रखी जायेगी। आज के परिवेश में सब कुछ स्वार्थ और धन के केन्द्र बिंदु हो कर रह गया है लेकिन भरत का वह श्रीराम के प्रति प्रेम और मां के बचन की गलती को स्वयं को दोषी मानना दूसरे में ऐसी झलक नहीं दिख सकती। भरत मंत्रियों से बिचार कर श्रीराम को वापस अयोध्या लाने का प्रण लेकर बन की ओर चलते हैं। पीछे से तीनो माताएं भी आती हैं। इस अवसर पर समिति के दान बहादुर तिवारी, अजय तिवारी, सुशील तिवारी, प्रखर, लवी, ऋतिक, अनमोल तिवारी, रामपाल राजभर, रामप्यारे राजभर, सूरज राजभर, राहुल तिवारी आदि मौजूद रहे।
रिपोर्ट-प्रदीप वर्मा