हिंदुओं को ‘जाति’ और ‘दलों’ में बांटना है खतरनाक : सम्पतकुमाराचार्य

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सामनेघाट स्थित श्रीवैष्णव मठ से निकली जल यात्रा में श्रीमहंत का उद्बोधन

वाराणसी (सृष्टि मीडिया)। हिंदू धर्म को जातिवाद के नाम पर तोड़े जाने का कुचक्र सैकड़ों वर्षों से जारी है। हालांकि जो लोग खुद को ऊंचा या नीचा समझते हैं उनको जातियों के उत्थान और पतन का इतिहास नहीं मालूम है। उन्होंने मुगल और अंग्रेजों के काल का इतिहास अच्छे से पढ़ा नहीं है। वे तो 70 वर्षों की विभाजनकारी राजनीति के शिकार हो चले हैं। इतिहास की जानकारी अच्छे से नहीं होने के कारण ही राजनीतिज्ञों ने नफरत फैलाकर हिंदुओं को धर्म, जाति और पार्टियों में बांट रखा है। इसके लिए जरूरी है कि हम जातिवाद नहीं हिंदूवाद के मार्ग पर अग्रसर रहें। उक्त बातें सामनेघाट स्थित श्रीवैष्णव मठ के श्रीमहंत स्वामी सम्पतकुमाराचार्य ने कही। मौका था सात दिनी कथा-यज्ञ के शुभारम्भ और जल यात्रा का। उनके साथ प्रमुख रूप से कथावाचक श्रीराम कल्याण चैरिटेबल ट्रस्ट, मालदह के श्रीमद्जगद्गुरु रामानुजाचार्य वासुदेवाचार्य जी महाराज (बंगाल पीठाधीश्वर) उपस्थित रहे।

राष्ट्र के निर्माण में धर्म की मजबूती आवश्यक

स्वामीश्री ने कहा कि वर्तमान में धर्म और संस्कृति पर प्राय: होने वाली बहस में यह भुला दिया जाता है कि भारत की पहचान सदा से धर्म एवं संस्कृति ही रही है। ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जहां धर्म संस्कृति का आधार है, वहीं संस्कृति धर्म की संवाहिका है। दोनों ही अपने-अपने परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र के निर्माण एवं राष्ट्रीयता के संरक्षण में सहायक सिद्ध होते हैं। जहां धर्म अपनी स्वाभाविकता के साथ सामाजिक परिवेश का आधार बनता है, वहीं संस्कृति सामाजिक मूल्यों का स्थायी निर्माण करती है। कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि धर्म का सूत्र मानव के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करता है तो वहीं संस्कृति मानवीय संवेदनाओं को सामाजिक सरोकार से जोड़ती है। इस तरह धर्म कालांतर में संस्कृति का रक्षण करता है और संस्कृति धर्म के आधार का उन्नयन करती है।

भक्तों ने गंगा को किया नमन

इसी क्रम में वासुदेवाचार्य महाराज ने कहा कि यह जलयात्रा और ऐसे धार्मिक आयोजन हिंदू सनातन धर्म को मजबूत करते हैं। धार्मिक लोगों को चाहिए कि ऐसे आयोजन निरंतर होते रहें। इससे हमारा समाज और राष्ट्र मजबूत होगा। जलयात्रा वैष्णव मठ से गंगा घाट तक गई। उक्त अवसर पर सैकड़ों भक्तों की उपस्थिति रही।

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