अतरौलिया आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। स्थानीय क्षेत्र के पंचपेड़वा आश्रम बड़का खपुरा में आयोजित श्री शतचंडी महायज्ञ के दूसरे दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी।
कथा वाचक विनोदानंद सरस्वती महाराज प्रयागराज द्वारा शिवचरित्र तथा सती प्रसंग पर चर्चा करते हुए कहा कि शक करने के कारण शिवजी ने कर दिया था देवी सती का त्याग, विश्वास पर ही टिका होता है हर रिश्ता। एक दिन शिव और सती, अगस्त ऋषि के आश्रम में रामकथा सुनने गए। सती को यह थोड़ा अजीब लगा कि श्रीराम शिव के आराध्य देव हैं। सती का ध्यान कथा में नहीं रहा और वह यह सोचतीं रहीं कि शिव जो तीनों लोकों के स्वामी हैं, वे श्रीराम की कथा सुनने के लिए क्यों आए हैं। कथा समाप्त हुई और शिव-सती वापस कैलाश पर्वत लौटने लगे। उस समय रावण ने सीता का हरण किया था और श्रीराम, सीता की खोज में भटक रहे थे। सती को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि शिव जिसे अपना आराध्य देव कहते हैं, वह एक स्त्री के वियोग में साधारण इंसान की तरह रो रहा है। सती ने शिवजी के सामने ये बात कही तो शिव ने समझाया कि यह सब श्रीराम की लीला है। भ्रम में मत पड़ो, लेकिन सती नहीं मानी और शिवजी की बात पर विश्वास नहीं किया। सती ने श्रीराम की परीक्षा लेने की बात कही तो शिवजी ने रोका, लेकिन सती पर शिवजी की बात का कोई असर नहीं हुआ। सती, सीता जी का रूप धारण करके श्रीराम के सामने पहुंच गईं।
श्रीराम ने सीता के रूप में सती को पहचान लिया और पूछा कि हे माता, आप अकेली इस घने जंगल में क्या कर रही हैं। शिवजी कहां हैं। जब श्रीराम ने सती को पहचान लिया तो वे डर गईं और चुपचाप शिव के पास लौट आईं। जब शिव जी ने सती से पूछा कि कहां गई थीं तो वह कुछ जवाब न दे सकीं, लेकिन शिव सब समझ गए थे। कि जिन श्रीराम को वे अपना आराध्य देव मानते हैं, सती ने उनकी पत्नी का रूप धारण करके उनकी परीक्षा लेकर उनका अनादर किया है। इस कारण शिवजी ने मन ही मन सती का त्याग कर दिया। सती भी ये बात समझ गईं और दक्ष के यज्ञ में जाकर आत्मदाह कर लिया। भागवताचार्य पं. चंद्रेश जी महाराज, पीठाधीश्वर पंडित कल्पना दास स्मारक सेवा संस्थान पचपेड़वा आश्रम ने आए हुए सभी श्रद्धालुओं का आभार व्यक्त किया।
रिपोर्ट-आशीष निषाद