आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। दुर्गा पूजा को लेकर हर तरफ तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं, लेकिन एक स्थान ऐसा है जहां पहुंचने के बाद मां को लगने वाला भोग देखकर यह जानने के लिए आम आदमी की जिज्ञासा बढ़ जाती है कि आखिर यह कौन सी परंपरा है। हम बात कर रहे हैं बंग सोसायटी के तीन दिवसीय दुर्गा पूजा समारोह की। यहां माता रानी को भोग लगाने की परंपरा सबसे अलग और निराली भी है।
आम तौर पर नवरात्र में मां को फलाहार का भोग लगाया जाता है, लेकिन यहां प्रतिमा स्थापना के समय तो फलाहार का भोग लगता है, लेकिन दूसरे दिन से मां को पूरा भोजन अर्पित किया जाता है। इसमें चार किस्म की दाल मिश्रित खिचड़ी के साथ कोहड़ा-चना और आलू आदि की सब्जी होती है। साथ में टमाटर की चटनी और पापड़ भी अर्पित किया जाता है। मां को भोग के बाद सभी लोग उसी को प्रसाद स्वरूप साथ में ग्रहण करते हैं। शहर में बंग समाज के लगभग डेढ़ सौ परिवार के लोग रहते हैं और सप्तमी से लेकर नवमी तक पूजा स्थल पर ही एक साथ भोजन करते हैं तथा अपना पत्तल स्वयं फेंकते हैं।
माता को अर्पित होने वाले शाम के भोग में फलाहार चढ़ता है। यानी दिन का भोजन सभी लोग माता जी के साथ करते हैं और रात का अपने-अपने घर। सोसायटी के सदस्य उत्तम कुमार दत्ता बताते हैं कि हम लोगों का मानना है कि मां की ही कृपा से हमें तरह-तरह के व्यंजन मिलते हैं तो फिर उन्हें केवल फल का भोग लगाना उचित नहीं है। उधर सुबह-शाम पूजा और आरती के दौरान सभी समय से पहुंचते और जयकारा के बीच धुनोची डांस करते हैं। पुरोहित और ढाकी (विशेष वाद्य यंत्र) बजाने वाले कलाकारों को पश्चिम बंगाल के आसनसोल से बुलाया जाता है। आरती के साथ लोग शंख, घंटी बजाते हैं।
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हरिऔध कला भवन से 1956 में हुई थी शुरुआत
आजमगढ़। बंग समाज की दुर्गा पूजा की शुरुआत हरिऔध कला भवन से 1956 में हुई, लेकिन उस भवन के ध्वस्त होने के बाद बीते वर्ष 2013 से इसका आयोजन परानापुर में हो रहा है। पूजा समारोह के लिए तीन बिस्वा भूमि 2005 में क्रय की गई थी।
रिपोर्ट-प्रमोद यादव/ज्ञानेन्द्र कुमार