आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर सरकार से लेकर प्रशासन तक गंभीर है, तो वहीं कृषि विज्ञान केंद्र, लेदौरा की ओर से बेहतर पहल की गई। गांधी शताब्दी स्मारक स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कोयलसा में मोबिलाइजेशन आफ कालेज स्टूडेंट्स कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें प्रतियोगिता के माध्यम से जागरूक करने के साथ बच्चों को पुरस्कृत भी किया गया।
प्राचार्य डा. स्वास्तिक सिंह की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य फसल अवशेष को खेत में प्रबंधन करना है। कार्यक्रम की रूपरेखा में फसल अवशेष प्रबंधन पर निबंध में उत्तम माधवन प्रथम, प्रतिभा यादव द्वितीय, माधव निषाद तृतीय एवं पेंटिंग प्रतियोगिता में मनीता को प्रथम, खुशी चौरसिया द्वितीय अभिलाषा चौबे तृतीय, दिब्यांस को सांत्वना तथा प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम में जाह्नवी गुप्ता प्रथम, अर्पिता द्वितीय एवं संजीव कुमार यादव तृतीय तथा 9 बच्चों को सांत्वना पुरस्कार से नवाजा गया। फसल अवशेष प्रतियोगिता में 150 बच्चों ने प्रतिभाग किया। केवीके के अध्यक्ष डा. एलसी वर्मा ने बताया कि किसान पराली को खेत में मिलाएं तथा खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाएं एवं अपनी पराली में बिल्कुल भी आग न लगाएं, क्योंकि इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है एवं आवश्यक पोषक तत्वों का नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष हमारे खेत के लिए भोजन का काम करते हैं और खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ उसमें उत्पादित उपज की गुणवत्ता को भी बढ़ाते हैं। केंद्र के सस्य वैज्ञानिक डॉ. शेर सिंह ने बताया गया कि 1 टन पराली को खेत में मिलाने पर 5.5 किलोग्राम नत्रजन , 2.3 किलोग्राम फास्फोरस, 25 किलोग्राम पोटाश, 1.2 किलोग्राम गंधक के अलावा आवश्यक मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व सूक्ष्मजीव होते हैं जो खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में काम आते हैं । 1 टन पराली में आग लगाने से 3 किलोग्राम सूक्ष्म कणों के भाग, 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड गैस, 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड गैस , 199 किलोग्राम राख , 2 किलोग्राम सल्फर डाइऑक्साइड गैस अलावा विभिन्न तरह का प्रदूषण होता है जो हमारे शरीर में आंखों में फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है।
फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. महेंद्र प्रताप ने बताया कि फसल अवशेष प्रबंधन की कई मशीनें हैं जो किसानों को अनुदान पर देय हैं जिनके द्वारा किसान पराली को आसानी से खेत में मिला सकते हैं। आयोजन में डॉ. आरके मौर्य, डॉ. जयराम यादव, चंदन कुमार, डॉ. निकेश गुप्ता, अरूण कुमार यादव, डॉ. उपेंद्र विश्वकर्मा का योगदान रहा।
रिपोर्ट-प्रमोद यादव/ज्ञानेन्द्र कुमार