तीन करोड़ से ज्यादा की राखियों से सजेंगी भाइयों की कलाइयां

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आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। राखी बाजार इस बार भी बाग-बाग दिख रहा है। हालांकि, अभी बाहर भेजने के लिए राखी खरीदने वाली महिलाएं ही दुकानों पर पहुंच रही हैं, लेकिन पर्व के नजदीक आने पर खरीदारों की भीड़ बढ़नी तय है।
कारोबारी लगभग साढ़े तीन करोड़ के व्यापार की उम्मीद लगाए बैठे हैं। व्यापारी इसके पीछे आबादी के अंकगणित को आधार मानते हैं। जिले की अनुमानित आबादी लगभग 54 लाख है। लिंगानुपात को आधार मानें तो लगभग 27 लाख और इसमें से 15 प्रतिशत दूसरे पंथ को निकाल दिया जाए, तो लगभग 23 लाख महिलाएं रक्षाबंधन का पर्व मनाएंगी। बाजार पांच रुपये से लेकर तीन सौ तक की राखियां उपलब्ध हैं। औसत 15 रुपये प्रति खरीदार निकाला जाए, तो तीन करोड़ 45 लाख आएगा।
राखी के थोक कारोबारी संजय मनमौजी कहते हैं कि वैसे तो कोई अधिकृत आंकड़ा नहीं होता, लेकिन आबादी को आधार और औसत निकालें तो कारोबार का आंकड़ा फिट कहा जाएगा। बताया कि राखी बाजार में हमेशा से पश्चिम बंगाल का कब्जा रहा है। ऐसा भी नहीं कि पूरा बाजार उसके हवाले रहा हो, लेकिन 40 प्रतिशत राखियां वहीं से मंगाई जाती हैं। बाकी की 60 प्रतिशत में दिल्ली, मुंबई, गुजरात की राखियां शामिल होती हैं।

वैसे तो नग से लेकर रुद्राक्ष तक से बनी राखियां बाजार में हैं। नग वाली राखियों की डिमांड सबसे ज्यादा है, लेकिन एक राखी ऐसी भी जिसके बारे में कम लोग जानते हैं। इसका इस्तेमाल होता है खासतौर से राजस्थानी और बंगाली परिवार में। इसका नाम है लुंबा। यह झुमका आकार का होता है। इसे महिलाएं एक-दूसरे को बांधती हैं। पहले तो इसकी बिक्री जोड़े में होती थी, लेकिन अब खुद एक भी खरीदकर भी बांधने की परंपरा शुरू हो गई है।

इनसेट:ःःःः एक ही थाली और पैकेट में सबकुछ
आजमगढ़। अगर भाई-बहन सफर में अथवा कहीं ऐसी जगह हैं जहां रोली, अक्षत व चंदन उपलब्ध होना मुश्किल है, तो घबराने की जरूरत नहीं। बाजार ने राखी की दुकानों पर 10 रुपये में एक ऐसे पैकेट की भी बिक्री हो रही है, जिसमें अक्षत, रोली, चंदन और मिश्री पैक किया गया है। अगर थाली की समस्या है तो एक ऐसा भी पैकेट उपलब्ध है जिसमें थाली से लेकर सभी सामान उपलब्ध हैं। दफ्ती की थाली की कीमत 20 रुपये, तो स्टील की थाली दो से लेकर तीन सौ रुपये तक हैै।
रिपोर्ट-सुबास लाल

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