आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। आजमगढ़ महोत्सव में बोंदू अहीर नाटक का मंचन किया गया जिसमें सूत्रधार संस्थान के कलाकारों ने अभिषेक पंडित के निर्देशन में स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले बलिदानियों को नमन किया।
भारत की आज़ादी की लड़ाई में बहुत से नायक हुए हैं। जिनके अमूल्य साहस और अमिट बलिदान के बूते ही हम आज आज़ाद हैं, लेकिन इन महान विभूतियों के साथ देश के लगभग हर जिले-शहर में बहुत से ऐसे वीर भी शहीद हुए हैं जिनकी चर्चा इतिहास के पन्नों में धूल-धूसरित पड़ी है। ऐसा ही एक नाम आजमगढ़ के 17वीं वाहिनी के सूबेदार रामदीन के बेटे ‘बोंदू अहीर’ का है जिन्होंने अपनी बहादुरी व चतुराई से सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जनपद के महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित करवाया।
यह नाटक इसी गुमनाम क्रान्तिकारी वीर पर आधारित है जिसने 3 जून, 1857 को ईस्ट इंडिया कम्पनी का सबसे बड़ा खजाना लूटते हुए आज़ादी के गदर में शामिल होने का एलान किया। इनके साथ इनके पुत्र रामटहल और होने वाले दामाद माधो सिंह ने भी मातृभूमि की आज़ादी में बड़ी ही बहादुरी के साथ अपनी आहुति दी। आजमगढ़ के तत्कालीन 17वीं वाहिनी पैदल सेना के तमाम देश भक्त सिपाहियों के सहयोग से बोंदू अहीर ने गोरखपुर से आजमगढ़ होते हुए बनारस जा रहे सात लाख रुपये के भारी-भरकम खजाने को लूटा और लूट के बाद उस खजाने का बहुत सारा हिस्सा नाना साहब को दिया। बोंधू सिंह के नेतृत्व में 17वीं बटालियन ने आज़मगढ़, फैजाबाद से लेकर कानपुर तक की लड़ाई लड़ी। अग्रेजों द्वारा 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को कुचले जाने के बाद भी भारत मां का यह वीर सपूत वेश बदलकर जीता रहा। इस नाटक ने लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में लोगों द्वारा की गई कुर्बानियों की याद ताजा कर दी।
रिपोर्ट-प्रमोद यादव/ज्ञानेन्द्र कुमार