आजमगढ़ महोत्सव: अहिल्या नाट्य प्रस्तुति में पुरुषवादी सोच व आदर्श नारी का किया गया वर्णन

शेयर करे

आज़मगढ़ (सृष्टिमीडिया)। आज़मगढ़ महोत्सव के अन्तर्गत हरिऔध कला भवन में नाटक ‘सुनलो स्वर पाषाणशिला के’ का अद्भुत मंचन हुआ।
नाटक‘‘सुनलो स्वर पाषाणशिला के’’ रामकथा का ऐसा प्रसंग है जो भगवान राम के जीवन के आरम्भ में आता है परन्तु भगवान राम के जीवन का महत्वपूर्ण प्रसंग है। यह अहिल्या प्रसंग पर आधारित रामकथा का नारी स्वर है, जो उनको पुरूषोत्तम रूप में सामाजिक मर्यादा प्रदान करता है। इस प्रसंग में नारी की सामाजिक दशा का विस्तृत वर्णन और राम के अप्रतिम पुरूषार्थ से उसके उद्धार का उल्लेख मिलता है।
अहिल्या उद्धार प्रसंग में राजनैतिक सत्ता की उच्श्रृंखलता का भी वर्णन मिलता है। इन्द्र की कुटिलता से उपजी यह घटना परवर्ती अनेक सैद्धांतिक दृष्टांतों को समाज के सम्मुख रखती है। गौतम ऋषि का पत्नी त्याग के उपरान्त तपस्या हेतु उन्मुख होना पुरूषवादी सोच का परिमार्जन है। अहिल्या द्वारा पति की इच्छा के सम्मुख नत हो जाना नारी आदर्श की पराकाष्ठा को भी प्रस्तुत करती है। राम द्वारा अहिल्या उद्धार का यह प्रसंग तब चरमोत्कर्ष पर होता है जब राम अहिल्या उद्धार के उपरान्त ‘‘जैसे माता कौशल्या है वैसे ही माता अहिल्या है’’ कह कर अहिल्या को समाज में स्थापित करते हैं।
प्रस्तुति का नाट्यालेख संतोष कुमार, गीत लालबहादुर चौरसिया का, ध्वनि अभिकल्पना प्रवीण पाण्डेय और प्रकाश संयोजन तथा संचालन मो.हफ़ीज द्वारा नाटक को एक ठोस धरातल प्रदान करती है। ध्वनि प्रभाव अजय कुमार और राजन कुमार झा, वेशभूषा एवं रूप सज्जा रिम्पी वर्मा, रितिका सिंह, पूजा केसरी, रश्मि पाण्डेय, कलापक्ष रतन लाल जायसवाल और नृत्य संयोजन सुनंदा भट्टाचार्या का सफल रहा। राजकुमार शाह का निर्देशन नई सोच से युक्त अनिर्वचनीय है। यह नाट्य समारोह एनटीपीसी, सिंगरौली के लिए एक सुखद अनुभूति रही।
रिपोर्ट-प्रमोद यादव/ज्ञानेनद्र कुमार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *