आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। भारतीय परंपरा और तीज-त्योहार वाकई पूरी दुनिया से अलग हैं। शायद यही कारण रहा कि हमेशा सर्प के नाम से भयभीत रहने वालों ने नाग पंचमी पर शिव के साथ न केवल नाग के नाम की पूजा की, बल्कि संपेरों को बुलाकर सांपों का नजदीक से दर्शन किया। परंपरा से परिचित संपेरे भी सुबह से ही गलियों-मोहल्लों में पिटारे में सांप लेकर घूमने लगे थे।
नाग पंचमी पर लोगों ने अन्य प्राचीन परंपराओं का भी निर्वहन किया। सुबह घर की साफ-सफाई के बाद लोगों ने नाग देवता के नाम से दूध और धान का लावा चढ़ाया और उसे पूरे घर में छिड़का। पूजा के बाद नाग देव से विष रहित जीवन की कामना की।
शिवालयों में पहुंचकर भगवान भोलेनाथ की पूजा की और उसके बाद शुरू हो गए अन्य कार्यक्रम। कहीं अखाड़ों में पहलवानों ने दांव आजमाए तो कहीं बच्चों ने कबड्डी खेली। महिलाओं ने घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए और परिवार के लोगों को परोसने के बाद हाथों में मेहंदी रचाई। सुबह से ही गांव के लोगों में त्योहार को लेकर उत्साह का माहौल था। बच्चे सुबह से ही झूले की ओर भागने लगे थे। ग्रामीण क्षेत्रों में पेड़ों पर पड़े झूलों पर अपनी बारी का इंतजार करने के बाद बच्चों को झूलने का अवसर मिल रहा था, लेकिन पहले की तरह से ग्रामीण क्षेत्रों में भी कजरी के स्वर नहीं गूंज रहे थे।
फूलपुर प्रतिनिधि के अनुसार नगर व आसपास ग्रामीण इलाकों में नाग पंचमी का त्योहार धूमधाम से मनाया गया। श्रद्धालुओं ने सरोवर के पास विधि-विधान से लावा, दूध, अनरसा मिष्ठान, पान, फूल, आदि से नाग देव का पूजन-अर्चन किया। इसी क्रम में द्रोणाचार्य आश्रम में पुरोहित राजीव मिश्रा द्वारा काल सर्प दोष निवारण के लिए की 18 वेदी बनाकर विधि-विधान से पूजा व रुद्राभिषेक किया गया। पूजा में काफी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।
रिपोर्ट-प्रमोद यादव/ज्ञानेन्द्र कुमार/मुन्ना पाण्डेय