ज्योतिषाचार्य विशाल पोरवाल ने दी विशेष जानकारी
वाराणसी (सृष्टि मीडिया)। सनातन धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से अश्वनी मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इसे पितृपक्ष भी कहते हैं। इस बार 16 दिनों में लोग अपने मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण पिंड दान आदि करते हैं। ब्राह्मण को भोजन व दान करते हैं। मान्यता है कि पितृ प्रसन्न होने पर जीवन में आने वाली परेशानियों को दूर करते हैं और जीवन में सुख समृद्धि प्रदान करते हैं। इस बार पितृपक्ष की शुरुआत 10 सितंबर दिन शनिवार से हो गई तथा सर्वार्थसिद्ध योग में प्रतिपदा का श्राद्ध होगा द्वितीय का श्राद्ध में जय योग रहेगा।
विधि-विधान से करें पूजन
बतादें, ज्योतिषाचार्य विशाल पोरवाल ने बताया की पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र सिद्ध योग में प्रतिपदा श्राद्ध किया जाएगाँ शुभ योग में तृतीय व वृद्धि योग में चतुर्थी का श्राद्ध होगा। यत्र गुरु पूर्णा महायोग में पंचमी श्राद्ध न दें। सिद्धि योग में षष्ठी रोहिणी नक्षत्र व वत्स योग सप्तमी का श्राद्ध होगा। अष्टमी के श्राद्ध के दिन सौम्य योग रहेगा। माता, दादी, परदादी, नानी आदि की श्राद्ध की तिथि का ज्ञान न होने पर नवमी को श्राद्ध कर सकते हैं। दशमी का श्राद्ध स्थिर योग में किया जाएगा। सिद्धि शिव योग में द्वादशी का श्राद्ध किया जाएगा। अमावस्या श्राद्ध रविवार 25 सितम्बर को शुभ योग में होगा तथा तर्पण करने की भी परंपरा है। हिंदू पंचांग अनुसार 16 सितंबर को सप्तमी श्राद्ध होने के बाद 18 सितंबर को अष्टमी श्राद्ध किया जाएगा। तिथि क्षय होने के कारण 17 को कोई श्राद्ध नहीं किया जाएगा।
कुतप काल में ही श्राद्ध करना श्रेष्ठ है
श्राद्ध पक्ष के दौरान को कुतप काल में ही श्राद्ध संपन्न करना चाहिए (दिन का आठवां) मुहूर्त को कुतप काल कहलाता है। यह समय सुबह 11:36 से 12:24 तक रहेगा। इसी समय पितृ गणों के निमित्त तर्पण, दान व ब्राह्मण भोजन करना चाहिए। पितृ प्रसन्न होते हैं तो देवता भी अपने आप ही प्रसन्न हो जाते हैं। पितृपक्ष में पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष 10 सितंबर शनिवार को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होंगे। पितृपक्ष का समापन 25 सितंबर रविवार को अश्वनी मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या बड़ मावस और दर्श अमावस्या भी कहा जाता है। वर्ष 2022 में 17 सितंबर को श्राद्ध की तिथि मान्य नहीं है।
ऐसे करें श्राद्ध
किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के माध्यम से साधक एवं तर्पण कर्म पिंडदान तर्पण करना चाहिए। श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को दान दिया जाना चाहिए। साथ ही यदि किसी गरीब जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सके तो बहुत पुण्य मिलता है। इसके साथ-साथ, गाय, कुत्ते, कौआ, पशु-पक्षियों आदि के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर निकलना चाहिए। यदि संभव हो तो गंगा नदी, बाग तालाब, कुआं, घर, गौशाला, तीर्थ आदि के किनारे आप श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। यदि यह संभव नहीं है तो घर पर भी किया जा सकता है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार यदि किसी की कुंडली में पितृदोष होता है तो वह व्यक्ति कई दोषो और समस्याओं से घिरा होता है। पितृ दोष बहुत ही गंभीर और कष्ट देने वाला होता है, जिसकी कुंडली में यह दोष होता है उससे मनुष्य का मन मस्तिष्क कभी शान्त नहीं रहेता है और परिवार में अकाल मृत्यु, असाध्य रोग, मानसिक उत्पीड़न व अशांति, व्यवसाय में नुकसान, पुत्र प्राप्त ना हो, नौकरी ना लगना, विवाह में विलम्ब धन बर्बाद होना तथा नाना प्रकार के कष्टों को भोगना पड़ता है इसलिए यह जरूरी है कि पितृदोष के लक्षण को पहचानना जाए और उस अनुसार उपाय कर इस दोष को शांत किया जाए।
उपायों से पाएं पितृदोष बाधा से मुक्ति
पूर्वजों का स्मरण करते हुए पितृ गायत्री का 21 बार मंत्र जाप करें। हर एकादशी चतुर्दशी अमावस्या रविवार और गुरुवार के दिन पितरों को जल दें और उन से क्षमा याचना करें। पितृपक्ष में तांबे के लोटे में काला तिल और सफेद फूल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर पितरों को जल चढ़ाएं। सूर्य को अर्घ्य देते समय (ऊँ सूर्याय नम:) 21 बार जाप करना चाहिए। लाल फूल, चंदन, अक्षत इत्यादि डालकर अमावस्या के दिन मध्यान्ह काल में त्रिपिंडी श्राद्ध करें और ब्राह्मण भोजन खिलाएं तथा प्रतिपदा से लेकर अमावस्या पर यंत्र तर्पण करें और अपने पितरों की उक्त तिथियों पर प्राण रद्द करें। विशेष परेशानी में पिशाच मोचन, वट वृक्ष, पीपल वृक्ष, तालाब, नदी आदि पर त्रिपिंडी श्राद्ध से पितरों को मोक्ष मिलता है और समस्त बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
रिपोर्ट : अमन विश्वकर्मा