तमसा किनारे राजघाट पर सजा मंडप, राम की हुईं माता सीता

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आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। स्थान था राजघाट, जहां आम दिनों में होता है दाह संस्कार वहां सजा था विवाह मंडप और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच माता सीता भगवान राम की हो गईं। मौका था भगवान श्रीराम और जानकी के विवाहोत्सव का। यहां समय से पहुंच गई थीं महिलाएं मंगल गीत गाने के लिए। इस दौरान महिलाएं जो गीत गा रही थीं उसमें राम का ही बखान सुनाई दिया। शहर से सटे राजघाट मेले में श्रीराम-जानकी विवाहोत्सव में ऐसा लगा कि मानों हकीकत में विवाह की रस्म पूरी की जा रही है। एक ओर वर और कन्या पक्ष तो दूसरी ओर एक किनारे आसपास की महिलाएं मंगल गीत गा रही थीं। गीत में भगवान राम की महिमा का बखान किया जा रहा था। महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला गीत ’भगति में अइने भगवान हो सबरी के घरवां, पूस की चटइया झार के बिछवनीं। भोगवा लगावें भगवान हो सबरी के घरवां। जूठी बेरिया तोरी भोगवा लगावें, भोगवा लगावें भगवान हो सबरी के घरवां’ सुनकर हर कोई भाव-विभोर हो गया। शाम चार बजे के करीब राम-जानकी का विवाह शुरू हुआ। वर पक्ष की ओर से जयमाल दास उर्फ नाटे मिस्त्री ने राजा दशरथ तो कन्या पक्ष की ओर से गोपाल वर्मा ने राजा जनक की भूमिका निभाई। कर्मकांडी विभूति नारायण उपाध्याय ने विवाह की रस्म पूरी कराई। इस दौरान पहुंचने वाले भक्तों में प्रसाद स्वरूप हलवा का वितरण किया गया।
दूसरी ओर लगे मेले में पहुंचने वालों ने तमसा नदी के पानी से खुद को शुद्ध किया और उसके बाद पुष्पमाला आदि के साथ संतों की समाधि पर शीश झुकाया। सैकड़ों साल से लगने वाले इस मेले के इतिहास के बारे में तो लोग नहीं जानते लेकिन यहां की विशेषता यह है कि कृष्ण और बलदाऊ की बाल रूप प्रतिमाएं बिकती हैं। मेले में आने वाले कुछ खरीदें या न खरीदें लेकिन अपने घर इन प्रतिमाओं को जरूर ले जाते हैं और साल भर पूजा करते हैं। यहां के पांच दिन बाद गोविंद दशमी का मेला शुरू होता है। मेले में श्रृंगार सामग्री, चोटहिया जलेबी, चाट-पकौड़ी से लेकर घरेलू उपयोग के सामानों की दुकानें लगी हुई थीं। हर कोई अपनी जरूरत के सामानों की खरीददारी कर रहा था।
रिपोर्ट-सुबास लाल

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