फूलपुर आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। कार्तिक महीने का हर दिन पूजन-अर्चन संग उल्लास का होता है। दीपावली के बाद छठ और उसके बाद अक्षय नवमी सामाजिक एकता का संदेश देती है। रविवार को भी ऐसा ही दिखा जब लोगों ने आंवला के वृक्ष की पूजा कर परिवार के आरोग्य होने की कामना की। सुबह रोज की पूजा के बाद खासतौर से महिलाएं आंवला वृक्ष की पूजा करने निकलीं। सिदूर, धूप-दीप अर्पण के बाद वस्त्र के रूप में महिलाओं ने वृक्ष में रक्षा बांधा और पेड़ की जड़ में जल अर्पित कर उसके बाद फलाहार का भोग लगाया। पूजा के बाद पेड़ को भोजन का भी निमंत्रण दिया। उसके बाद कहीं दिन में तो कहीं रात में पेड़ के नीचे भोजन बनाया गया। भोजन में विशेष रूप से उपले पर दाल, बाटी व आलू-बैगन के चोखे के साथ आंवले की चटनी तैयार की गई। कहीं-कहीं जिस परिवार के लोग आंवला वृक्ष के नीचे भोजन नहीं बना सके, उन्हें भी उनके पड़ोसियों ने भोजन के लिए आमंत्रित किया। इससे भोजन संग सामूहिकता का भी संदेश मिला। कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी कहा जाता है और मान्यता है कि इस दिन किए जाने वाले किसी भी अच्छे कार्य का फल अक्षय हो जाता है।
कर्मकांडी और ज्योतिष के जानकार पंडित चंदन दुबे शास्त्री का कहना है कि एक तरफ जहां आंवला वृक्ष की पूजा पहले से चली आ रही परंपरा के तहत की जाती है, वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी है। वृक्षों का संरक्षण, संवर्धन पर्यावरण की रक्षा की दृष्टि से जहां महत्वपूर्ण माना गया है वहीं खासतौर से आंवले को स्वास्थ्य रक्षक माना जाता है। कहते हैं कि आंवले को अमृत फल अथवा धात्री फल भी कहा जाता है। धात्री शब्द का अर्थ उपमाता भी है। जननी के समान आंवला भी सबके स्वास्थ्य की रक्षा करता है। इस प्रकार देखा जाए तो हमारे ऋषि-मुनियों ने भी वृक्ष की पूजा को इसीलिए महत्वपूर्ण माना है। अब प्राचीन परंपराओं से विमुख होने का ही नतीजा है कि मनुष्य तमाम प्रकार की बीमारियों का शिकार हो रहा है।
रिपोर्ट-मुन्ना पाण्डेय