आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। पानी के अभाव में तमाम किसान धान की रोपाई नहीं कर सके और उनका खेत खाली रह गया, लेकिन ऐसे किसानों को परेशान होने की जरूरत नहीं है। इसकी भरपाई तोरिया (लाही) की खेती करके की जा सकती है। आपदा को अवसर में बदलने का यही सही वक्त है।
यह जानकारी कृषि विज्ञान केंद्र लेदौरा के अध्यक्ष डा. लालचंद्र वर्मा ने दी। बताया कि इस समय किसान अपने खेतों में तोरिया (लाही) की बोआई कर सकते हैं। जिन किसानों ने धान की अगेती फसल लगाई है वह भी उसकी कटाई कर तोरिया की बोआई कर सकते हैं।
एलसी वर्मा ने बताया कि तोरिया खरीफ और रबी के बीच में बोई जाने वाली तिलहनी फसल है। इसकी खेती करके अतिरिक्त आय अर्जित किया जा सकता है। पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जोताई के बाद दो-तीन जोताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए। तोरिया की उन्नत प्रजातियां टी-9, भवानी, पीटी 303 एवं तपेश्वरी हैं, जो 90-95 दिन के अंदर पक जाती हैं।
उपज क्षमता 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में चार किलोग्राम बीज लगता है। रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित व प्रमाणित बीज होना चाहिए। इसके लिए तीन ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम की दर से बीज को उपचारित करें। सितंबर के अंत तक बोआई कर लें। गेहूं की अच्छी फसल लेने के लिए बोवाई सितंबर के पहले पखवाड़े में समय मिलते ही करना चाहिए। भवानी प्रजाति की बोआई सितंबर के दूसरे पखवाडे़ तक कर सकते हैं। मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए।
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बोआई के पहले करें इन रसायनों का प्रयोग:ःःः
आजमगढ़। तोरिया की बोआई के पहले 110 किलोग्राम यूरिया, 312.5 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और म्यूरेट आफ पोटाश 85 किग्रा प्रति हेक्टेयर में डाले। 110 किग्रा यूरिया पहली सिंचाई यानी बोआई के 25-30 दिन के अन्दर टाप ड्रेसिंग के रूप मे डालें। घने पौधों को बोआई के 15 दिन के अंदर निकालकर पौधों की आपस की दूरी 10 से 15 सेंमी कर देनी चाहिए और खरपतवार नष्ट करने के लिए एक निराई-गुड़ाई भी साथ में कर देनी चाहिए। खरपतवार ज्यादा हो, तो पेंडीमेथिलीन 30 ईसी का 3.3 लीटर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर बोआई के 3 दिन के अंदर छिड़काव करना चाहिए। फूल निकलने के पूर्व की अवस्था पर सिंचाई करना आवश्यक है। जल निकास की व्यवस्था करें। फसल में कीट प्रकोप होने पर प्रबंधन करें।
रिपोर्ट-सुबास लाल