लोकार्पित हुई “जमीन पर उतरी कविता“ और “माजी के मजार“

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आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। जनपद के उत्तरी छोर पर स्थित श्री रामानंद सरस्वती पुस्तकालय जोकहरा में बुधवार को राष्ट्रीय संगोष्ठी, नई पुस्तकों के लोकार्पण सहित कई कार्यक्रम आयोजित किये गये जिसमे देश के हिंदी साहित्य के कई विद्वानों ने प्रतिभाग किया अपने वक्तव्य दिये तथा प्रगतिशील लेखक संघ की सार्थकता को जीवंत किया।
प्रगतिशील लेखक संघ आजमगढ़ व श्री रामानंद सरस्वती पुस्तकालय जोकहरा के संयुक्त तत्वाधान में बुधवार को “स्मरण-हरिशंकर परसाई” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व प्रख्यात साहित्यकार विभूति नारायण राय की अध्यक्षता में प्रारंभ हुई। संगोठी से पूर्व कवि आलोचक व गांधी पीजी कालेज मालटारी विभागाध्यक्ष डा.हसीन खान की पुस्तक “जमीन पर उतरी कविता“ व सैयद सिब्ते हसन द्वारा लिखित व डा.फिदा हुसैन द्वारा अनुदित ”माजी के मजार” का लोकार्पण देश के जाने माने साहित्यकारों जिनमें प्रमुख रूप से विभूति नारायण राय, डा. आशीष त्रिपाठी, प्रियदर्शन मालवीय, रघुवंशमणि, संध्या निवेदिता, मनोज सिंह, बसंत त्रिपाठी, गार्गी प्रकाशन के सम्पादक, लेखक, अनुवादक दिगम्बर ने संयुक्त रूप से किया। इस दौरान डा. हसीन ने अपनी नवप्रकाशित पुस्तक से दुनिया भर की माताओं को समर्पित काव्य पाठ भी किया। अपने स्वागत वक्तव्य में डा. राजाराम सिंह ने कहा कि साहित्य समाज को दिशा देता है। उन्होने हरिशंकर परसाई की जन्मशती स्मरण पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में उपस्थित साहित्यकारों का स्वागत किया। संगोष्ठी के पहले सत्र का विषय “विकलांग श्रद्धा का दौर“ था जिस पर प्रमुख वक्ता के रूप में बोलेते हुये काशी हिंदु विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा. आशीष त्रिपाठी ने कहा कि आजादी के बाद हरिशंकर परसाई जी को बीसवीं शताब्दी का प्रतिनिधि लेखक कहा जा सकता है। अपने व्याख्यान में डा. त्रिपाठी ने हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचनाओं का उल्लेख करते हुये हरिशंकर परसाई जी को आजादी के बाद व्यंग्य लिखने की आवश्यकता ही क्यों पड़ी ? क्योंकि समाज विद्रुप हुआ जा रहा था, आडम्बर का बोलबाला हो चला था। महाविद्यालय में महाविद्यालय नही, विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय नही, पुस्तकालय में पढ़ने वाला नही, उसी तरह लोकतंत्र में लोकतंत्र नही तो ऐसे समय में हरिशंकर जी व्यंग्य को अपना हथियार बनाते हैं। डा. त्रिपाठी ने कहा कि हरिशंकर परसाई नब्बे के दशक में लिखते हैं कि विकलांग श्रद्धाओं से आवारा भीड़ पैदा होती है। ये वो भीड़ है जो हिटलर पैदा करती है। हरिशंकर परसाई जन्मशती पर उनके निबंधों व रचनाओं को कोट करते हुये डा. आशीष त्रिपाठी ने कहा कि हरिशंकर परसाई जी की रचनाओं का केंद्रीय सरोकार फासीवाद है। उन्होने कहा कि परसाई जी अपनी रचनाओं में फैंटैसी का प्रयोग बखूबी करते हैं, तथा धर्मकथाओं की पुर्नव्याख्या का खुलकर उपयोग करते हैं। उन्होने कहा परसाई जी गद्य का एक नया प्रारूप लेकर आते हैं जो प्रेमचंद्र से भिन्न है, परसाई जी की रचनाओं की यह खासीयत है कि उनका एक वाक्य दूसरे वाक्य से गुथा हुआ नही और न ही उनमें अर्न्तसम्बंध देखने को मिलता है। सत्र को प्रियदर्शन मालवीय, रघुवंशमणि, फिदा हुसैन, मनोज सिंह, बसंत त्रिपाठी, ने प्रमुख रूप से संबोधित किया संचालन डा. हसीन खान द्वारा किया गया। राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे सत्र में “ठिठुरता हुआ गणतंत्र“ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित करते हुये जबलपुर से आये हुये राजीव कुमार शुक्ल जी ने हरिशंकर परसाई जी के कई अंतरंग पहलुओं से अवगत कराया तथा उनके साहित्य की गूढ़ चर्चा की। इस सत्र की अध्यक्षता साहित्यकार गया सिंह ने व संचालन संध्या निवेकिदता ने किया। सत्र को सुरेंद्र राही, अनीता गोपेश, ज्ञानचंद बागड़ी, व संजय श्रीवास्तव ने प्रमुख रूप से संबोधित किया। इप्टा के कलाकारों द्वारा कई जनवादी गीत प्रस्तुत किये गये।
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महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति वह वर्ष साहित्यकार विभूति नारायण राय ने कहा कि एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संगोष्ठी थी हरिशंकर परसाई जी की जन्म शती मनाई जा रही है ।इस संगोष्ठी में देश के वरिष्ठ साहित्यकारों रचनाकारों ने प्रतिभा किया काफी दिनों के बाद इस तरह का कोई कार्यक्रम आयोजित हुआ है। मैं समझता हूं कि यह एक सार्थक पहल है।
रिपोर्ट-सुबास लाल

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