पांच साल में वोटरों की संख्या काफी बढ़ी पर घट गए भाजपा के वोट

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आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। लोकसभा चुनाव के बाद हुई मतगणना के साथ परिणाम तो घोषित हो गया, लेकिन आजमगढ़ की दोनों सीटों का परिणाम कई सवाल भी छोड़ गया, जिसका उत्तर संगठन और प्रत्याशियों को खुद तलाशना होगा। हालांकि, जनता और राजनीतिज्ञों ने इसका उत्तर तलाशकर कारणों को स्पष्ट कर दिया है। इसमें सबसे बड़ा जो दो कारण सामने आया है उसमें जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी और जनता की उपेक्षा है। वर्ष 2019 की तुलना में आजमगढ़ में 78997 और लालगंज में 86902 मतदाता बढ़े। वहीं वर्ष 2019 की तुलना में आजमगढ़ में 14500 और लालगंज में 32287 वोट कम हो गए। यानी वोटर बढ़े, मगर प्रत्याशियों के वोट कम हो गए और यही बात संगठन से लेकर प्रत्याशियों के लिए बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है। जब बात भाजपा की हो रही है, तो उसके ही प्रत्याशियों की गतिविधियों पर चर्चा भी होनी चाहिए। शुरू करते हैं आजमगढ़ लोकसभा के प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ की, तो चुनाव जीतने या उससे पहले अभिनेता के रोल से बाहर नहीं निकल सके। चंद लोगों से घिरे रहे और फिल्म की कहानी की तरह से उन्हीं लोगों की कहानी पर विश्वास करते रहे। जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं से उन्होंने खुद के स्तर पर चुनाव चर्चा करना मुनासिब नहीं समझा। यही हाल लालगंज की नीलम सोनकर के साथ रहा और उन्होंने चुनाव के बाद लालगंज क्षेत्र की जनता के बीच बैठने की जरूरत नहीं समझी। क्षेत्र स्तर पर बड़ी जिम्मेदारी संभाल चुके एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने चुनाव के दौरान ही यह महसूस कर लिया था कि प्रत्याशी आम कार्यकर्ताओं की सुधि नहीं ले रहे हैं। चंद मठाधीशों से घिरकर ही पूरी चुनावी रणनीति तय कर रहे हैं और उन्हीं के इशारे पर फैसला ले रहे हैं। नाम न छापने की शर्त पर यहां तक बताया कि कार्यकर्ता हम लोगों से क्षेत्र भ्रमण के लिए अपनी डिमांड कर रहे हैं, जिसे प्रत्याशी को पूरा करना चाहिए, लेकिन वह कार्यकर्ताओं को तवज्जो ही नहीं दे रहे हैं। दूसरा पक्ष यह भी रहा कि भाजपा के लोग केवल इंटरनेट मीडिया पर फोटो शेयर करने तक रह गए। प्रत्याशियों ने पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को घास तक नहीं डाले। ऐसे में पार्टी के मूल कार्यकर्ता नाराज थे और शायद उन्होंने प्रधानमं़त्री की उस अपील की भी अनदेखी कर दी, जिसमें पीएम ने सभी कार्यकर्ताओं से पांच-पांच घरों तक पहुंचने को कहा था। इसके अलावा प्रशासनिक स्तर पर आम कार्यकर्ताओं की अनदेखी, वरिष्ठ नेताओं तक मुश्किल पहुंच ने भी कार्यकर्ताओं को नाराज किया। सदर में दिनेश लाल यादव निरहुआ ने काम तो किया, लेकिन कार्यकर्ताओं का सुख-दुख जानने का प्रयास नहीं किया। अपना कार्यालय तो भंवरनाथ में खोल दिया, लेकिन जनता से मिलने के लिए उनके पास समय नहीं था और फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त हो गए। इसी तरह से कई अन्य प्रमुख कारण शामिल हैं।

इनसेट–
तीन चुनाव में मतदाताओं की संख्या और भाजपा को मिले वोटों का विवरणःःःः

मतदाता——भाजपा को मिले मत
आजमगढ़ःःःः
वर्ष 2014-1703121—277102
वर्ष 2019-1789168—361704

वर्ष 2024-1868165—347204

लालगंजःःःः
वर्ष 2014-1661470—324016
वर्ष 2019-1751980—357223

वर्ष 2024-1838882—324936

इनसेट–
प्रत्याशियों ने की सिंबल को जीत का प्रमाण पत्र मानने की भूल

आजमगढ़। जिले की दोनों सीटों पर भाजपा की हार को कहीं से भी संगठन अथवा नेतृत्व की कमजोरी का कारण नहीं माना जा सकता। हार का कारण स्वयं प्रत्याशियों की कार्यशैली रही है। जीत के बाद प्रत्याशियों ने कार्यकर्ताओं के सुख-दुख को जानने का कभी प्रयास नहीं किया और चंद लोगों के घेरे में सिमटकर रह गए। चुनाव में खुद के हिस्से का प्रयास नहीं किया और मोदी व योगी के भरोसे रह गए। यह भी कहा जा सकता है कि प्रत्याशियों ने सिंबल को ही जीत का आधार मानने की बड़ी भूल की, जो जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं की नाराजगी का बड़ा कारण बन गया। सदर सांसद चुनाव के बाद शूटिंग में व्यस्त रहे, तो लालगंज की प्रत्याशी ने शहर स्थित अपने आवास से निकलकर कभी लालगंज की जनता के बीच जाना उचित नहीं समझा। खुद के हिस्से का प्रयास न करके प्रत्याशियों ने नेतृत्व को भी कमजोर कर डाला। इस विषय पर खुद प्रत्याशियों को मंथन करने की जरूरत है।
-सुजीत श्रीवास्तव ‘भूषण’
प्रोफेसर राजनीति शास्त्र, डीएवी पीजी कालेज।
रिपोर्ट-सुबास लाल

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