साबित हो गया जनाब! विकास नहीं जातियां लड़ाती हैं चुनाव

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आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। पिछड़े और अनुसूचित जाति बाहुल्य आजमगढ़ संसदीय सीट के चुनाव परिणाम ने एक बार साबित कर दिया कि यहां विकास नहीं, बल्कि जातियां चुनाव लड़ाती और परिणाम की दिशा तय करती रही हैं।
अब तक हुए चुनाव के परिणामों पर गौर करें, तो यह तो साफ है कि यहां जातियों के बीज के भरोसे सियासत की फसल लहलहाती रही है। इसमें मुसलमान मतों का प्लस होना महत्वपूर्ण रहा है। वह जिसके साथ जुड़े उसकी जय हो गई। हालांकि, शुरू के दो चुनावों में ऐसा कुछ नहीं दिखा। वर्ष 1962 में लालगंज (सुरक्षित) सीट के गठन के बाद आजमगढ़ सीट पर जातीय समीकरणों को लगभग सभी दलों ने साधने का पूरा प्रयास किया।
आजमगढ़ सीट के लिए तीन उपचुनाव सहित अब तक 20 बार के चुनाव में 14 बार यादवों के सिर ताज सजना भी इस बात को साबित करता रहा है। लगभग 24 प्रतिशत सवर्ण, 37 प्रतिशत पिछड़े, 25 प्रतिशत अनुसूचित जाति व 12 फीसद मुस्लिम वाले क्षेत्र में अब तक चार बार सवर्ण और तीन ही बार मुस्लिम प्रत्याशियों को सफलता मिल सकी है।
जाति के आधार पर होने वाले चुनाव का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 1989 में जिस समय देश में जनता दल की लहर चल रही थी और वीपी सिंह को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया गया था। आजमगढ़ से त्रिपुरारी पूजन प्रताप सिंह जनता दल के प्रत्याशी थे। उनके पक्ष में प्रचार करने आए फिल्म अभिनेता को सुनने के लिए रात तक जनता मुख्य चौक पर खड़ी थी, लेकिन चुनाव परिणाम आया तो सभी अवाक रह गए। उस समय पहली बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले रामकृष्ण यादव के सिर पर जीत का ताज सज गया। उस समय वह यूपी के पहले बसपा सांसद बने थे।
रिपोर्ट-सुबास लाल

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