आजमगढ़ (सृष्टिमीडिया)। चाइल्ड केयर क्लिनिक सिधारी द्वारा विश्व अस्थमा दिवस के अवसर पर जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया। इस मौके पर आये हुए सभी लोगों को अस्थमा बीमारी के बारे में विस्तार जानकारी दी गयी।
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. डी.डी. सिंह ने बताया कि अस्थमा श्वसन तंत्र की बीमारी है, जिसकी शुरुआत एलर्जी से होती है। जिसके कारण श्वांस नली में सूजन हो जाती है, जिससे मरीज को श्वांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अस्थमा के मरीजों को चलने पर सांस फूलना, पूरा वाक्य न बोल पाना, बेहोशी की हालत होना, बार बार छींक आना, सोते समय घरघराहट या सीटी जैसी आवाज आना, बार बार सर्दी या जुकाम होना आदि लक्षण होते हैं। उन्होने कहा कि अस्थमा के बारे में भ्रांति है कि दमा दम से जाता है, परन्तु ऐसा नहीं है। यदि मरीज सावधानी पूर्वक परहेज का पालन करे तो सारी उम्र अस्थमा के झटके से सुरक्षित रह सकता है।
अस्थमा के मरीजों के लिए नेबुलाइजर और इन्हेलर कारगर साबित होता है। आकस्मिक स्थिति में इन्हेलर का प्रयोग मरीज की स्थिति सुधारने में सहायक होती है तथा रोग की तीव्रता को कम कर देता है। इन्हेलर और नेबुलाइजर के प्रयोग से दवा सीधे फेफड़े में पहुँचती है, जिससे मरीज को तुरंत आराम मिलता है। डॉ. सिंह ने कहा कि कुछ लोगों को यह भी लगता है कि इन्हेलर का प्रयोग मरीज को आदती बना देता है या इसका दुष्परिणाम होता है, जबकि ऐसा नहीं है। क्योंकि ये दवाएं सीधे फेफड़े में पहुँचती हैं और इनकी मात्रा भी माइक्रोग्राम में होती है। अतः कोई नुकसान पहुंचाने वाली बात नहीं होती है। यह गर्भावस्था और अत्यंत छोटे बच्चों के लिए भी पूर्णतः सुरक्षित है।
रोकथाम के बारे में डॉ. डी.डी. सिंह ने बताया कि मरीज को धूल, धुएँ से दूर रहना चाहिए। फूलों के पराग से बचना चाहिए। घर में सीलन नहीं होनी चाहिए। सोफे, तकिया, चादर आदि की नियमित सफाई होनी चाहिए। एकाएक धूप से आकर ठण्डा पानी नहीं पीना चाहिए। आइसक्रीम और कोल्ड डिं्रक का सेवन नहीं करना चाहिए। तली भुनी, मसालेदार और बाहरी खाद्य सामग्री का उपयोग नहीं करना चाहिए। जिससे इस गम्भीर बीमारी से बचा जा सके।
रिपोर्ट-प्रमोद यादव/ज्ञानेन्द्र कुमार