सन्तों ने किया आदि शंकराचार्य का पूजन
वाराणसी (सृष्टि मीडिया)। आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदान्त के अप्रतिम व्याख्याता थे। जिनके अनुसार आत्मा और परमात्मा एकरूप हैं। अन्य सब कुछ माया है। माया के वशीभूत होकर जीव परमात्मा का साक्षात्कार नहीं कर पाता। उक्त बातें स्वामी विमलदेव आश्रम ने व्यक्त किए। मौका था आदिशंकराचार्य की जयंती का। सिद्धगिरिबाग स्थित ब्रह्मनिवास पर काशी के सन्तों एवं प्रबुद्धजनों ने आदि शंकराचार्य को स्मरण करते हुए श्रद्धासुमन अर्पित किए। वैशाख शुक्ल पञ्चमी को केरल के कालडी में आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था। सर्वप्रथम काशी के सन्तों ने दण्डी संन्यासी प्रबन्धन समिति के अध्यक्ष स्वामी विमलदेव आश्रम के साथ आदि शंकराचार्य का पूजन किया। उसके पश्चात ज्योतिषपीठ के उद्धारक शंकराचार्य ब्रह्मानन्द सरस्वती जी द्वारा स्थापित ब्रह्मानन्देश्वर महादेव का दुग्धाभिषेक किया गया।
ग्रंथों का भी किया ज़िक्र
गंगा महासभा के संगठन महामन्त्री गोविन्द शर्मा ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने गीता, उपनिषदों और ब्रह्मसूत्र पर भाष्य सहित दर्जनों ग्रन्थ लिखे। समकालीन अवैदिक मतों का खण्डन कर वैदिक धर्म की भारत में पुनर्स्थापना की। सनातन धर्म की रक्षा हेतु उन्होंने भारतवर्ष की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। उत्तर मे ज्योतिर्मठ, दक्षिण में श्रृंगेरी, पूर्व में गोवर्धन तथा पश्चिम में शारदा मठ की स्थापना कर अपने चार प्रमुख संन्यासी शिष्यों को सनातन धर्मावलम्बियों के प्रबोधन के लिए उन पीठों पर नियुक्त किया। मात्र बत्तीस वर्ष की अल्पायु में शरीर त्याग करने से पूर्व आचार्य शंकर ने भारत के तत्कालीन 59 राज्यों तथा 72 अलग-अलग सम्प्रदायों को एक सूत्र में बाँध दिया था। इतने विशाल कार्य सामान्य मानव कर ही नहीं सकता इसलिए उन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है।
इनकी रही उपस्थिति
प्रो. ओमप्रकाश सिंह, प्रो. अरविन्द जोशी, राजेश प्रताप सिंह, माधवी तिवारी, पार्षद लकी वर्मा, विपिन सेठ, राहुल केसरी, राणामणि तिवारी, सत्यम, रूद्र, गप्पू सेठ समेत अनेक श्रद्धालु उपस्थित थे।