बीएचयू में पीएचडी छात्रों और सुरक्षाकर्मियों में नोकझोंक व धक्कामुक्की
एक छात्र और छात्रा घायल, अस्पताल में एडमिट
वाराणसी (सृष्टि मीडिया)। बीएचयू में आज पीएचडी छात्रों और सुरक्षाकर्मियों में नोकझोंक व धक्कामुक्की हो गई। परीक्षा नियंता कार्यालय में इससे आहत छात्रों ने ताला जड़ दिया। इसके बाद छात्र-छात्राएं जोर-जोर से नारे लगाने लगे। इसमें एक छात्र और छात्रा घायल हो गए। जिनको अस्पताल में भर्ती कराया गया है। छात्रों ने आफिस में ताला जड़कर वेद मंत्र और शिव तांडव का जप किया। छात्रों ने बताया कि पांच शोधार्थियों का पीएचडी एडमिशन सात महीने क्लास चलने के बाद निरस्त करने नोटिस भेजा गया है। इसी मामले को लेकर हम छात्र सोमवार दोपहर से ही धरने पर बैठे हैं। छात्र सोमवार की पूरी रात धरने पर बैठे रहे। रातभर उन्होंने आफिस के बाहर ही रात्रि भोज किया था। गेट पर ही पत्तल और ग्लास रखकर छात्र-छात्राओं ने भोजन लिया। विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ नारे लगाए।
परीक्षा नियंत्रक संदेह के घेरे में
जानकारी के अनुसार, धरनारत सभी शोध छात्र हिंदी विभाग से हैं। इन्होंने कहा कि उनकी प्रवेश परीक्षा निरस्त किए जाने की योजना चल रही है। यहां पर उसी का विरोध हो रहा है। छात्रों ने बताया कि हिंदी विभाग में जुलाई-2022 सत्र में पीएमडी एडमिशन हुए थे। 73 शोधार्थियों को चयनित किया गया, जिसमें से 20 अभ्यर्थी ‘आरईटी’ के माध्यम से आए थे। अब जबकि पिछले छह महीने से उनकी कक्षाएं सुचारू रूप से चल रही हैं, ऐसे में अचानक से परीक्षा नियंत्रक कार्यालय द्वारा मौखिक रूप से पांच छात्रों के निष्कासन की सूचना दी गई। इसके बाद सभी शोधार्थियों के एडमिशन पर तलवार लटकती नजर आ रही है। छात्रों का कहना है कि छह महीने बाद फाइनल आंसर की जारी करना परीक्षा नियंत्रक को संदेह के घेरे में लाता है।
सेलेक्शन के बाद लगा धांधली का आरोप
सेलेक्शन के बाद कुछ लोगों ने पीएचडी की प्रवेश प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगा दिया। बाद में इसकी जांच के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी गठित की। रिपोर्ट तो सार्वजनिक नहीं की गई है, मगर इसमें कुछ शोध छात्रों के एडमिशन को निरस्त करने जैसा आदेश शामिल है। धरने में शामिल हिंदी विभाग के वैभव मीना ने कहा कि शोध छात्र जो जुलाई-2022 से विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में पंजीकृत हैं, उनका तो भविष्य अधर में लटक जाएगा। यदि उनका एडमिशन कैंसिल कर दिया गया, तो फिर वे कहां जाएंगे। एडमिशन के 7 महीने बाद ऐसी किसी रिपोर्ट का आना अन्यायपूर्ण है।